माँ

प्रियंका सौरभ (अंक: 218, दिसंबर प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

(प्रियंका सौरभ के काव्य संग्रह ‘दीमक लगे गुलाब’ से) 
 
माँ ममता की खान है, 
माँ दूजा भगवान है। 
माँ की महिमा अपरंपार, 
माँ श्रेष्ठ-महान है॥
 
माँ कविता, माँ है कहानी, 
माँ है दोहों की ज़ुबानी। 
माँ तो सिर्फ़, माँ ही है
न हिन्दुस्तानी, न पाकिस्तानी॥
 
माँ है फूलों की बहार, 
माँ है सुरीली सितार। 
माँ ताल है, माँ लय है, 
माँ है जीवन की झंकार॥
 
माँ वेद है, माँ ही गीता, 
माँ बिन ये जग रीता। 
माँ दुर्गा, माँ सरस्वती, 
माँ कौशल्या, माँ सीता॥
 
माँ है तुलसी की चौपाई, 
माँ है सावन की पुरवाई। 
माँ कबीर की वाणी है, 
माँ है कालजयी रूबाई॥
 
माँ बग़िया है, माँ कानन, 
माँ बसंत-सी मनभावन। 
आख़िर देवों ने भी माना, 
माँ रूप है सबसे पावन॥
 
माँ प्रेम की प्रतिमूर्ति, 
माँ श्रद्धा की आदिशक्ति। 
माँ ही हज, माँ ही मदीना, 
माँ से बड़ी न कोई भक्ति॥
 
माँ है सृष्टि का आग़ाज़, 
माँ है वीणा की आवाज़। 
माँ है मन्दिर, माँ मस्जिद, 
माँ प्रार्थना, माँ है नमाज॥
 
माँ है गंगा-सी अनूप, 
माँ धरती पे हरी धूब। 
माँ दुख हरण, माँ कल्याणी, 
अजब निराले माँ के रूप॥

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