सबके पास उजाले हों

01-12-2022

सबके पास उजाले हों

प्रियंका सौरभ (अंक: 218, दिसंबर प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

(प्रियंका सौरभ के काव्य संग्रह ‘दीमक लगे गुलाब’ से) 
 
मानवता का संदेश फैलाते, 
मस्जिद और शिवाले हों। 
नीर प्रेम का भरा हो सब में, 
ऐसे सब के प्याले हों॥
 
होली जैसे रंग हों बिखरे, 
दीपों की बारात सजी हो, 
अँधियारे का नाम ना हो, 
सबके पास उजाले हों॥
 
हो श्रद्धा और विश्वास सभी में, 
नैतिक मूल्य पाले हों। 
संस्कृति का करें सब पूजन, 
संस्कारों के रखवाले हों॥
 
चौराहे न लूटें अस्मत, 
दुःशासन न फिर बढ़ पाए, 
भूख, ग़रीबी, आतंक मिटे, 
न देश में धंधे काले हों॥
 
सच्चाई को मिले आज़ादी, 
लगे झूठ पर ताले हों। 
तन को कपड़ा, सिर को साया, 
सबके पास निवाले हों॥
 
दर्द किसी को छू न पाए, 
न किसी आँख से आँसू आए, 
झोंपड़ियों के आँगन में भी, 
ख़ुशियों की फैली डालें हों॥
 
‘जिएँ और जीने दें’ सब
न चलते बरछी भाले हों। 
हर दिल में हो भाईचारा
नाग न पलते काले हों॥
 
नगमों-सा हो जाए जीवन, 
फूलों से भर जाए आँगन, 
सुख ही सुख मिले सभी को, 
एक दूजे को सँभाले हो॥

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

सांस्कृतिक आलेख
सामाजिक आलेख
ऐतिहासिक
काम की बात
कार्यक्रम रिपोर्ट
दोहे
चिन्तन
कविता
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में