युद्ध की चाह किसे है?

15-07-2025

युद्ध की चाह किसे है?

प्रियंका सौरभ (अंक: 281, जुलाई द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

युद्ध की चाह किसे है, 
कौन चाहता है रक्त की बूँदें, 
और राख में सने पंखों की चुप्पी? 
पर जब झूठ का आवरण ओढ़े, 
सियार महल की देहरी लाँघे, 
तो शेर का मौन भी गरजता है, 
एक सन्नाटा जो पहाड़ चीर दे। 
 
जब मैदान में उतरे कपट, 
और धूर्तता की कुटिल चालें, 
तब सिंह की नज़रें न थरथरातीं, 
न पंजे ठिठकते हैं, 
बस गरिमा की लहर उठती है, 
और सत्य की दहाड़, 
मिटा देती है छद्म की हर छाया। 
 
निरर्थक हैं वे वादियाँ, 
जहाँ सियारों का शासन हो, 
जहाँ रीढ़ की हड्डियाँ पिघलती हों, 
और सिंह की शिराएँ मौन हो जाएँ। 
 
इसलिए, युद्ध कोई नहीं चाहता, 
पर जब समय की तलवार उठती है, 
तो हर सियार, हर छलावा, 
अपनी औक़ात पहचानता है। 

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