दीवाली से पहले का वनवास 

01-11-2025

दीवाली से पहले का वनवास 

डॉ. प्रियंका सौरभ (अंक: 287, नवम्बर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

कभी अँधेरा ज़्यादा गहराने लगे, 
तो मत समझना कि सूरज सो गया है। 
हर दीये के जलने से पहले, 
थोड़ा सा तेल क्यों खो गया है। 
 
जब भी लगे कि अब थक गए हो, 
ज़रा अपने सपनों को याद करो। 
जो रात सबसे अँधेरी लगती है, 
वही सुबह का वादा करती है। 
 
राम को भी चौदह बरस लगे थे, 
दीवाली के दीप जलाने में, 
तो तुम क्यों डरते हो कुछ साल
अपने सपनों के पीछे जाने में? 
 
हर गिरना, बस उठने की तैयारी है, 
हर हार, जीत की ज़िम्मेदारी है। 
ज़िन्दगी कभी आसान नहीं होती, 
पर ख़ूबसूरत, हाँ, वही होती है। 
 
जो साथ चले—वो सच्चा होता है, 
जो अँधेरे में भी रोशनी ढूँढे—
वो अपना होता है। 
सीता की तरह विश्वास रखो, 
लक्ष्मण-सा साहस रखो, 
राम-सा धैर्य रखो—
फिर हर वनवास भी तुम्हारा उत्सव बनेगा। 
 
क्योंकि दीवाली तभी तो चमकती है, 
जब दिल ने अँधेरों को हराया हो, 
और रौशनी ने कहना सीखा हो—
“मैं डर के बाद भी आया हूँ।” 

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