ख़बर नहीं, सौदा है

01-12-2025

ख़बर नहीं, सौदा है

डॉ. प्रियंका सौरभ (अंक: 289, दिसंबर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

सच बेच दिया—मोल लगा कर, 
क़लम टाँग दी दीवारों पर। 
अख़बारों की जेबें भारी, 
जनता लुटी बाज़ारों पर। 
 
“स्वतंत्र” शब्द अब खोखला-सा, 
सत्ता की थाली में परोसा। 
जो बोले, उस पर मुक़द्दमे, 
जो चुप—वही सबसे रोशनपोशा। 
 
रील बना दो—मुद्दा निपटा, 
ख़बर जली—पर स्क्रीन चमका। 
पत्रकार भूखा घूम रहा है, 
एंकर का महल नया दमका। 
 
भइया, ये कैसी काली घड़ी? 
धन का डेढ़िया सत्य झड़ी। 
16 नवंबर सिर्फ़ कहे—
“काग़ज़ की आज़ादी पड़ी पड़ी।” 

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