एक महिला शिक्षक की मौन कहानी

15-11-2025

एक महिला शिक्षक की मौन कहानी

डॉ. प्रियंका सौरभ (अंक: 288, नवम्बर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

हर सुबह,
मैं अपने ही बच्चे को घर पर छोड़ आती हूँ,
किसी और के बच्चे को सिखाने जाती हूँ।
 
मैं कहती हूँ—
“टिफिन खाओ, पानी पीना मत भूलना,
स्वस्थ रहो, मुस्कुराते रहो . . .”
और उसी पल सोचती हूँ—
क्या मेरा अपना बच्चा भी खाना खा पाया होगा?
 
मैं घंटों बच्चों के सपनों को आकार देती हूँ,
जबकि मेरा नन्हा-सा अपने सोने की कहानी के लिए
माँ का इंतज़ार करता है।
 
मैं स्कूल में बच्चों के आँसू पोंछती हूँ,
और मेरा बच्चा शायद घर में
चुपचाप रो रहा होता है।
 
और जब दुनिया पूछती है—
“तुम ये सब क्यों करती हो?”
मैं मुस्कुरा देती हूँ . . .
 
क्योंकि शिक्षक होना मतलब है
हज़ारों बच्चों का भार उठाना,
उनके भविष्य को गढ़ना,
भले ही अपने मन की शांति तोड़नी पड़े
उस बच्चे के लिए जिसे मैंने जन्म दिया था।
 
मैं सिर्फ़ अक्षर नहीं सिखाती,
मैं अक्षरों से भविष्य लिखती हूँ . . .


सभी प्यारे शिक्षकों को समर्पित????????

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