अनाम तपस्वी

15-09-2025

अनाम तपस्वी

डॉ. प्रियंका सौरभ (अंक: 284, सितम्बर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

शिक्षक वही है
जो शिष्य को यह न सिखाए कि क्या सोचना है, 
बल्कि यह सिखाए कि कैसे सोचना है। 
जो बच्चों की जिज्ञासा को दबाए नहीं, 
बल्कि प्रश्नों को पंख दे। 
जो उन्हें अनुशासन की कठोरता में नहीं, 
बल्कि संवेदनशीलता की कोमलता में गढ़े। 
 
शिक्षक दीपक की भाँति है, 
जो स्वयं जलकर
अनगिनत जीवनों में उजाला भरता है। 
वह अनाम तपस्वी है, 
जिसकी थकान उसके शिष्यों की सफलता में
ग़ायब हो जाती है। 
वह वह संगीत है, 
जो मौन रहकर भी
जीवन के हर कोने को स्वर से भर देता है। 

शिक्षक केवल ज्ञान का वितरक नहीं, 
वह तो आत्मा का माली है, 
जो जिज्ञासा की कली को
संस्कारों की धूप और संवेदनाओं की वर्षा से
खिलाता है। 
डिग्रियाँ जीवन नहीं गढ़तीं, 
जीवन तो शिक्षक की मुस्कान गढ़ता है। 
 
वह सिखाता है—
सत्य क्या है, साहस क्या है, 
और करुणा क्या है। 
मशीनें सूचना दे सकती हैं, 
परन्तु शिक्षक ही इंसान बना सकता है। 
इसीलिए कहा गया है—
“गुरु देवो महेश्वर।” 
बदलते समय में भी गुरु का अर्थ अनमोल है, 
क्योंकि वही है, 
जो अंधकार से प्रकाश तक ले जाता है। 

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