बड़े बने ये साहित्यकार

01-12-2022

बड़े बने ये साहित्यकार

प्रियंका सौरभ (अंक: 218, दिसंबर प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

(प्रियंका सौरभ के काव्य संग्रह 'दीमक लगे गुलाब' से) 
 
बँटते बंदर बाँट पुरस्कार। 
दौड़ रहे है पीछे-पीछे, 
बड़े बने ये साहित्यकार॥
 
पुरस्कारों की दौड़ मेंं खोकर, 
भूल बैठे हैं सच्चा सृजन। 
लिख के वरिष्ठ रचनाकार, 
करते है वो झूठा अर्जन॥
मस्तक तिलक लग जाए, 
और चाहे गले में हार। 
बड़े बने ये साहित्यकार॥
 
अब चला हाशिये पे गया, 
सच्चा कर्मठ रचनाकार। 
राजनीति के रंग जमाते, 
साहित्य के ये ठेकेदार॥
बेचे कौड़ी मेंं क़लम, 
हो कैसे साहित्यिक उद्धार। 
बड़े बने ये साहित्यकार॥
 
देव-पूजन के संग ज़रूरी, 
मन की निश्छल आराधना॥
बिन दर्द का स्वाद चखे, 
न होती पल्लवित साधना॥
बिना साधना नहीं साहित्य, 
झूठा है वो रचनाकार। 
बड़े बने ये साहित्यकार॥

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