रक्षा बंधन पर कविता

15-08-2025

रक्षा बंधन पर कविता

डॉ. प्रियंका सौरभ (अंक: 282, अगस्त प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

राखी का ये प्यारा त्योहार, 
भाई-बहन के रिश्ते का उपहार। 
नन्ही कलाई पर बँधी एक डोर, 
भावनाओं से भरी, स्नेह का शोर। 
 
हर बहन की आँखों में सपना, 
भाई का साथ, न कोई अपना। 
वचन है रक्षा का, प्रेम अपार, 
सिर्फ़ धागा नहीं, है संस्कार। 
 
मीठी-सी मुस्कान लिए बहना आई, 
थाल सजाकर आरती लाई। 
रोली, चावल, और मिठाई साथ, 
बँधा है इसमें बचपन का हाथ। 
 
भाई ने भी मुस्कुराकर कहा, 
“तू ही तो है मेरा ख़ुदा।” 
तेरे आँचल की छाँव में पलूँ, 
हर जनम में तुझको ही बहन बनाऊँ। 
 
राखी की इस रीत में है अपनापन, 
दूरी भी हो, फिर भी है बंधन। 
ना कोई छल, ना दिखावा है, 
ये प्रेम तो बस भावना का बहाव है। 
 
सावन की ख़ुश्बू, बारिश की फुहार, 
हर दिल में बसता रक्षाबंधन का त्योहार। 
संस्कारों की ये सुनहरी थाली, 
हर घर में लाए ख़ुशहाली। 
 
चलो मिलकर मनाएँ ये पर्व, 
रिश्तों को दें फिर एक गर्व। 
हर राखी बने भाई की ढाल, 
हर बहना बने उस पर मिसाल। 

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