मैं क्यों अपनी पतवार तजूँ?

15-07-2021

मैं क्यों अपनी पतवार तजूँ?

अभिषेक पाण्डेय (अंक: 185, जुलाई द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

एक दो विजयों में क्या हर्ष करूँ, 
किंचित हारों में क्यों रंज करूँ, 
इस अविरल बहती रणधारा में, 
मैं क्यों अपनी पतवार तजूँ? 
वार एक का अंतर है जीवन मृत्यु में, 
तो मैं क्यों लिए भय की ओट लड़ूँ? 
घाव ही मेरे विजय तिलक हैं, 
उनसे उखड़ी पीड़ा पर 
मैं काहे को रोष करूँ, 
युद्ध अभी तो लम्बा है, 
आदि ही में क्यों शस्त्र तजूँ? 
मृत्यु ही तो अमर राग है, 
दूजे रागों का क्यों 
अधरों में पान करूँ? 
इस निर्मम जीवन धारा में, 
मैं क्यों अपनी पतवार तजूँ?
मैं क्यों अपनी पतवार तजूँ?

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