जीवन-नौका खेते रहना

01-08-2021

जीवन-नौका खेते रहना

अभिषेक पाण्डेय (अंक: 186, अगस्त प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

ये धूप छाँव चलती जाएँगी ,
कट फिर फिर फ़सलें लहराएँगी।
निज जीवन नौका खेते रहना,
ये लहरें आएँगी, जाएँगी॥
 
कुछ पल को बदली छाएगी,
रजनी अतिशय गहरायेगी।
झंझावातों की तीव्र हवा,
आशा कण भू पर बिथराएगी॥
 
पर तुम आगे बढ़ते रहना,
प्रतिमान नए गढ़ते रहना।
निश्चित ही सूरज निकलेगा,
ये तिमिर मोम सा पिघलेगा॥
 
तेरा जयगान भुवन में छाएगा,
इतिहास तुझे दोहराएगा।
बस सृजन-बीज सेते रहना,
जीवन नौका खेते रहना॥

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