आओ विकास

01-06-2021

आओ विकास

अभिषेक पाण्डेय (अंक: 182, जून प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

पक्की नहरें, पक्की नदियाँ,
पक्की सड़कें, पक्की गलियाँ,
पूरा पोषण, उन्नत शिक्षा,
कब आएँगी मेरे "बलियाँ"?
 
नंगे बदन, उघारे हैं,
झुग्गी में डेरा डारे हैं।
दशकों से अपलक नयनों से,
दिल्ली की ओर निहारे हैं॥
 
अब वही आस मिटने वाली,
मन उनका है ख़ाली - ख़ाली।
अब बस उनका एक सहारा,
रूखी रोटी, फूटी थाली॥
 

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