ज़िंदगी के रंग

15-07-2020

ज़िंदगी के रंग

राजनन्दन सिंह (अंक: 160, जुलाई द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

हज़ारों नहीं
लाखों नहीं 
करोड़ों भी नहीं
ज़िंदगी के अनगिनत रंग है
तटस्थ होकर जीना
जीने से जी चुराना है
किसी एक नज़रिये से
ज़िंदगी को देखना
और परिभाषित कर देना
अधूरा कार्य होगा
अपनी नज़र में 
साधू अच्छा है
तो पेशेवर चोर भी 
क्या पता? बुरा न हो
कोई जानवर यदि हिंसक है
तो उसे प्रकृति ने बनाया है
एक उड़ते पक्षी को 
इतना कौशल है
पानी में डुबकी लगाकर 
तैरती मछली पकड़ ले जाता है
और एक पक्षी जिसे 
दो आसमान ऊपर उड़कर
सड़ा गला मुर्दा ढूँढ़ना पड़ता है
चूहा-बिल्ली बाज़-पैरोगी शेर-हिरण 
सब प्रकृति ने बनाये हैं
प्रकृति और परिस्थितियों ने
मुझे वह नहीं बनाया 
जो मैं चाहता था
तो इसमें मेरी अपनी 
ग़लती क्या है?

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