मेरा मन

01-09-2020

मेरा मन

राजनन्दन सिंह (अंक: 163, सितम्बर प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

मेरा मन 
एक सादा पन्ना था
बिलकुल सफ़ेद धब्बा रहित
बगुले के पंख की भाँति
तुमने अपने प्रेम की स्याही से
मेरे कोरे मन पर
लगा दिया प्रेम का चिह्न
मन के सादे पन्ने पर
खींच दी तुमने भय की रेखा
हाँ भय 
प्रेम के खोने का भय 
मेरे मन के सादे सफ़ेद दीवार पर
छिड़क दी तुमने
राग द्वेष काम और क्रोध की स्याही 
थाप दिया एक थप्पा
मेरा मन
एक शांत और चुपचाप सरोवर था
तुमने फेंक दी उसमें माया का ढेला
पैदा कर दी मोह का तरंग
मेरे शांत मन वीणा के तार को छेड़कर
भर दिया तुमने मेरे मन में संगीत
ख़ुशियों के रंग 
और जीवन के उमंग

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