आहत होती सच्चाई

15-08-2021

आहत होती सच्चाई

राजनन्दन सिंह (अंक: 187, अगस्त द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

क़दम क़दम पर धोखाधड़ी
बित्ते- बित्ते पर चतुराई
कुटिल प्रफुल्लित इंच-इंच पर
आहत होती सच्चाई
 
आसमान से ऊँचा भाषण
बातों के सब वामन वीर
वस्तुतः शातिर गद्दारी
मक्कारी के माहिर मीर
 
ज्ञान उगलते आत्म ज्ञानी
धूर्त धरम के व्यापारी
अवसर पा वाचक बन जाते
तारक-ब्रह्म दुराचारी
  
भोजन, बस्ता, वस्त्र, पुस्तकें
और सायकिल दिखते दान
नहीं दिखते विद्यालय में
संस्कार, विद्या, बलिदान
 
व्यर्थ की बातें ख़ूब पढ़ाते
लिखवाते और रटवाते
अंतर्मन से चौकस रहते
मूल बात उलझा जाते
 
जिनकी वाणी जितनी मीठी
जो दिखता जितना बड़ा दयाल
उनका हृदय उतना काला
मुस्काता  विषभरा व्याल
 
समाचार टीवी पर पढ़ते,
जैसे कोई मुँह चिढ़ाय
 प्रफ्फुलित हो कोई उल्लू
उचक-उचक कर हमें डराय
 
तिल ख़बर का ताड़ खींच
कर खंड-खंड घंटों बेचे
बेहुदे  अनुप्रास  लगा
दुःखंड-काव्य ही कर देते
 
जनहित में झूठ अनशन-भाषण
नारेबाज़ी और चक्का जाम
स्वारथ-सौदा सच चुपके, छुपके
निर्लज्ज बनकर सारे आम
 

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