देश का दर्द

15-02-2021

देश का दर्द

राजनन्दन सिंह (अंक: 175, फरवरी द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

दर्द वहाँ है
जहाँ सामर्थ्य नहीं है
दर्द उसे है
जो विवश है
लाचार है
अक्षम है
जिसे दर्द है
वह रो सकता है रोता है
चीख़ सकता है चीख़ता है
अपनी विवशता अक्षमता पर 
सर धुन सकता है सर धुनता है
दर्द वहाँ नहीं है
जहाँ सामर्थ्य है
वहाँ दर्द का जबाब है
दर्द का इलाज है
दूसरों का दर्द
भला कौन समझता है
किसे फ़ुर्सत है
किसे ज़रूरत है
यदि कोई हमदर्द है
तो ज़रूरी नहीं वह हमदर्द ही हो
जिसे दर्द है वह सोच नहीं सकता
जो सोंच सकता है उसे दर्द नहीं है
तो भला कौन सोचेगा
भला क्यों सोचेगा
देश का दर्द
देश के लोगों का दर्द

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