जूते का अधिकार

01-12-2020

जूते का अधिकार

राजनन्दन सिंह (अंक: 170, दिसंबर प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

मैं जाति से निम्न 
अदना सा जूता हूँ तो क्या 
पोशाक तो मैं भी हूँ
आदमी की शान बढ़ाता हूँ
मुझे चाटकर लोग
आदमी से अपना
काम बनवाते हैं
जो गोली बारूद से नहीं डरता
लोग उन्हें 
मेरे नाम से डराते हैं
 
आदमियों में  जब अच्छा-बुरा, 
साधु-असाधु 
सभी आदमी कहलाता हैं
छोटे ओहदे से 
बड़े सत्ता शीर्ष तक 
आरक्षण पाता है
फिर पोशाकों में सदियों से यह भेद
मेरे ही साथ क्यूँ? 
मनुष्यों के पाँवों में पड़े रहना
मेरे साथ भी अन्याय है 
अत्याचार है
मानव सर के उपर 
हमें भी आरक्षण दो
जिस पर टोपी और पगड़ी का 
सदियों से एकाधिकार है
राजा भरत ने 
हमारे बड़े भाई 
श्रीराम खड़ाऊँ को
अपने सर पर रखा था 
चौदह वर्षों तक राजसिंहासन पर 
विराजमान भी किया था 
राजा भरत की जय
भगवान श्री रामचंद्र की जय
इतिहास साक्षी है इस बात का
न तो हमें कभी कोई अभिमान था 
न अहंकार है
और रहे भी तो क्यूँ
यह तो हमारा सदियों पुराना 
खोया हुआ अधिकार है
आखिर पोशाक तो मैं भी हूँ
आदमी के पाँव को 
पथ के धूल-कीचड़ 
काँटे-कंकड़ ईंट पत्थर के 
ठोकरों से बचाता हूँ।
मैं जाति से निम्न 
अदना सा जूता हूँ तो क्या 
पोशाक तो मैं भी हूँ
आदमी की शान बढ़ाता हूँ

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