अंधभक्ति के दरवाज़े
राजनन्दन सिंहचापलूसी 
और 
अंधभक्ति के दरवाज़े 
किसी के लिए बंद नहीं हैं
राजनीति के द्वार भी
सभी के लिए खुले हैं। 
फन्ने-ख़ान
शेख़ चिल्ली
जोगी-फ़क़ीर
मुल्ला-पंडित 
ज्ञानी-महाज्ञानी
यहाँ तक कि देवता 
बनने पर भी 
कोई प्रतिबंध नहीं है।
उदासीन
निष्पक्ष 
तमाशबीन 
मौनी 
बड़बोला
जिसे जो मर्ज़ी हो रहें
राष्ट्रहित में 
कर्तव्यनिष्ठता का 
अराजकता के साथ
कोई अनिवार्य अनुबंध नहीं है।
फिर बचता है कौन
कवि
लेखक
पत्रकार 
साहित्यकार 
और कर्तव्यनिष्ठ
ज़िम्मेदार आम नागरिक 
लालच
भेद
भय 
और पूर्वाग्रह ने
इनकी प्रकृति को भी मसल दिया है
बदल दिया है
आज गुरु भी दुष्चरित्र है
पहरेदार भी चोर है
क्योंकि 
अब पेशे पदवी और प्रवृत्ति का
आपस में कोई संबंध नहीं है
चापलूसी 
और 
अंधभक्ति के दरवाज़े 
किसी के लिए बंद नहीं हैं
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