ग़रीब सोचता है

15-02-2021

ग़रीब सोचता है

राजनन्दन सिंह (अंक: 175, फरवरी द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

गरीब सोचता है
अमीरी बढ़े
जिससे रोज़गार मिलता रहे
अमीर सोचता है
गरीबी बढ़े
जिससे सस्ते मज़दूर मिलते रहें
पार्टियाँ सोचती हैं
अमीर कुछ ग़लत करें
और चंदा दे
अमीरों से नोट मिलता रहे
नेता सोचता है
ग़रीब पिसे
जिससे उसके भाषण को
विषय मिले
ग़रीबों से वोट मिलता रहे

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