बाज़ारवाद

राजनन्दन सिंह (अंक: 182, जून प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

बाज़ार में
ज़रूरत की वस्तुएँ बिकें 
तो महँगाई 
कभी आसमान नहीं चढ़ती
माँग और पूर्ति के 
नियम में उलझ जाती है
ऐसे में मोटे बनिये का गल्ला भी
मोटा नहीं हो पाता 
दुबला रह जाता है
इसलिए बाज़ारवाद 
बाज़ार में ज़रूरत की वस्तुएँ नहीं
वस्तुओं की ज़रूरत बेचता है
 
बाज़ारवाद वह कला है 
वह विज्ञान भी है जो 
घास की अँगूठी 
हीरे से महँगे दामों में बेच दे
घास के गहने बनाने वाली
बहुराष्ट्रीय कंपनी
ग्रीन ग्रास ज्वेलर्स इंक
यदि बाज़ार में आ जाए
वेज मैटल
नेचर फ़्रैंडली
डिफ़िकल्ट मेंटेनेंस
प्राईड ऑफ़ रिच
जैसे कुछ अंग्रेज़ी विशेषणों के साथ
मैन्युफ़ैक्चरिंग तकनीक
और मार्केटिंग का पेटेंट कराकर
तो मेरा दावा है
वह ज़रूर बेच देगा घास की अँगूठी
हीरे की मुद्रिका से 
एक सवैया दाम बढ़ाकर
 
मेरा नाम बदल देना 
जो यदि कोई भी ऐसी कंपनी 
कभी बाज़ार में आ जाए
और मैंने जो कहा 
वैसा न कर दिखाए
सालभर के भीतर 
बहुमुल्य कठोर धातु की जगह
दुनिया की अमीर उँगलियों पर
वेज गहनों का नया फ़ैशन
वह नरम घास की अँगूठी
जो यदि न छा जाए 
 

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