गौ पालकों से
राजनन्दन सिंहबछड़े तुमने बाँध रखे हैं
कहाँ अंततः जायेगी
आठ पहर वो कहीं भी भटके
सुबह शाम तो आयेगी
गाय सभी की माता है
घर-घर में रोटी दाता है
पन्नी कूड़ा कुछ भी खाकर
दूध तुम्हें दे जाएगी
प्यास लगे तो कहाँ से पानी
सोचो यह पीती होगी
कंठ सूखता होगा तो
किस हाल में यह जीती होगी
घूमते घूमते गाय बेचारी
थक कर इतनी होती चूर
जहाँ जगह कोई खाली पाती
वहीं बैठ जाती मजबूर
सर्दी गर्मी आँधी पानी
सब कुछ सड़कों पर सहती है
महानगर का धुँआ पीती
खुले में बैठी रहती है
गाय वस्तुतः तुम्हें पालती
दूध दही तुम खाते हो
घर बैठे तुम बिन गौ सेवा
गौ पालक कहलाते हो
दूध दही खाते हो तो
कुछ लाज रखो इस नाते की
विधिवत बाँधो गाय, जुटाओ
चारा-पानी माते की
मत छोड़ो इस तरह गाय को
भूखी क्या-क्या खायेगी
सोचो कहाँ-कहाँ भटकेगी
किसकी गौ कहलाएगी
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