उपेक्षा 

15-11-2020

उपेक्षा 

राजनन्दन सिंह (अंक: 169, नवम्बर द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

अपनों की उपेक्षा में
फिर भी रहती है 
एक उम्मीद
शिकायत
उलाहने 
दावे
और अधिकारों का
कुछ न कुछ
अवशेष 
मगर 
अपने समाज से बाहर
गैर समाजियों की 
उपेक्षा में कभी भी नहीं होती
कहीं किसी मानवता का लेश
होता है तो सिर्फ़
दग्ध करनेवाला 
प्रत्युत्तर विहीन मौन रोष
विवशता
अपमान
घृणा और 
एक कटु ज़हर
विशेष

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