समभाव का  यथार्थ

01-04-2021

समभाव का  यथार्थ

राजनन्दन सिंह (अंक: 178, अप्रैल प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

लोग 
अपेक्षा रखते हैं
व्यवस्था से
अधिकारियों से नेता से
उनसे हम से आप से
निष्पक्षता की, न्याय की
समदर्शिता समभाव की
यथार्थ यह है 
कि पिता भी नहीं देखता
अपने सभी पुत्रों को  
समान नज़रों से
समान भाव से
महाराज दशरथ के प्राण
ज्येष्ठ पुत्र वियोग ने लिये थे
आठवें तारणहार की आशा में
अपने छः पुत्र कंस को
स्वयं यदुवीर 
वासुदेव ने सौंप दिये थे 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कहानी
सांस्कृतिक आलेख
कविता
किशोर साहित्य कविता
हास्य-व्यंग्य कविता
दोहे
सम्पादकीय प्रतिक्रिया
बाल साहित्य कविता
नज़्म
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में