नहीं अब ओंठ हिलते हैं नहीं आवाज़ होती है
राजनन्दन सिंहनहीं अब ओठ हिलते हैं
नहीं आवाज़ होती है
उँगुलियाँ बातें करती हैं
दिल कि बात होती है
महीनों देखा करते थे जहाँ
हम डाकिये की राह
वहाँ अब डाक लहरों से
पल-पल की बात होती है
हम कितनी दूर बैठे हैं
नहीं मतलब इन बातों का
हवा में बोलते हैं हम
हवा में बात होती है
महज़ कुछ बटनों से जुड़कर
दुनिया दिखती है पर्दे पर
अपनों को देखते हैं हम
अपनों से बात होती है
कबूतर से कंप्यूटर तक
पहुँचा ये सिलसिला कैसे
कहाँ किसको फ़ुर्सत है-
सोचें कैसे बात होती है
छुप-छुप के काग़ज़ पर लिखना
किताबों में चिट्ठी मिलना
ये कब की बात है नन्दन
और ये क्या बात होती है
नहीं अब ओंठ हिलते हैं
नहीं आवाज़ होती है
उँगुलियाँ बातें करती हैं
दिल कि बात होती है
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