मेरा गाँव

15-09-2020

मेरा गाँव

राजनन्दन सिंह (अंक: 164, सितम्बर द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

मेरे मन में बसा है मेरा गाँव
मुझे आदत है
कच्ची सड़कों 
अशहरीकृत पगडंडियों पर
सुबह की ओस भरी दूबियों पर
पैदल टहलने की 
नंगे पाँव
 
बदलती ऋतुओं के संग
बदलते गाँव के रंग
कभी बिछी हुई हरियाली
कभी गेंहू धान की
पकी हुई सुनहरी बाली
 
हुलसते चेहरे
ख़ुशी के गीत 
मुझे भाते हैं
मन को लुभाते हैं
खुली हवा 
और पेड़ों की घनी लंबी छाँव
मेरे मन में बसा है मेरा गाँव

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कहानी
सांस्कृतिक आलेख
कविता
किशोर साहित्य कविता
हास्य-व्यंग्य कविता
दोहे
सम्पादकीय प्रतिक्रिया
बाल साहित्य कविता
नज़्म
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में