कोरोना की तरह

01-08-2021

कोरोना की तरह

राजनन्दन सिंह (अंक: 186, अगस्त प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

कोरोना की तरह ही अदृश्य 
मगर इससे भी ख़तरनाक
कई और वायरस 
पहले से मौजूद हैं संसार में 
इनकी तो कोई टेस्ट किट भी नहीं 
शोधे गये आज तक 
कोरोना की तरह
इनके भी सिर्फ़ लक्षण ही 
आभास होते हैं 
अन्याय
झूठ
झाँसा 
दमन 
शोषण
ये सब फैलते हैं देखा-देखी
पर ये मानव के प्राण नहीं लेते 
बस उन्हें तोड़ देते हैं 
उम्र भर के लिए
 
हलाँकि पीड़ित जन
विवशता का मास्क पहनते हैं 
पाउच वाली अल्कोहल युक्त 
रोष और मौन  आक्रोश से
सैनिटाइज़ भी होते रहते हैं 
मगर समस्या यह है कि वायरस 
प्रताड़ित से प्रताड़ित में नहीं 
प्रताड़क से प्रताड़कों में फैलता है। 
अफ़सोस कि कोरोना की भाँति 
इस मार से निपटने का
भविष्य में भी कोई टीका नहीं
विश्व सरकारों ने अब तक 
ऐसा कुछ किया नहीं
सोचा नहीं

2 टिप्पणियाँ

  • आदरणीया डाॅ पद्मावती जी, रचना को पढ़ने एवं रचना पर आपकी टिप्पणी के लिए सादर आभार। आपकी टिप्पणी से रचना के कथन को और भी बल मिला।

  • 29 Jul, 2021 08:09 PM

    सोचेगी भी नहीं । अन्याय झाँसा झूठ दमन शोषण तक तक रहेंगे जब तक पृथ्वी रहेगी । अनादि काल से है और अनन्त काल तक इनका अस्तित्व रहेगा । प्रभावी शब्दावली! बधाई!

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कहानी
सांस्कृतिक आलेख
कविता
किशोर साहित्य कविता
हास्य-व्यंग्य कविता
दोहे
सम्पादकीय प्रतिक्रिया
बाल साहित्य कविता
नज़्म
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में