हमारा कुशल भारत
राजनन्दन सिंहसंदर्भ नोट– अभी इसी महीने मैंने अपने गाँव की यात्रा की। सरकारी कार्यालयों के चक्कर लगे और पाया कि क्या राजधानी दिल्ली, क्या पिछड़ा राज्य बिहार, या क्या दक्षिण भारत का पूर्ण विकसित महानगर बंगलौर और वहाँ स्थित पूर्ण डिजिटलाइज़्ड पैन कार्ड ऑफ़िस। सभी जगह सरकारी बाबूओं का हाल एक जैसा है। सुदूर दक्षिण से अंत उत्तर तक अपने देश के इस कार्य प्रणाली की सांस्कृतिक समानता पर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। देश के करोड़ों लोग अपने काग़ज़ में अपना ग़लत नाम,पता, उमर लिखे जाने से परेशान हैं जिसे सही करवाने के लिए दफ़्तरों के चक्कर पर चक्कर लगा रहे हैं आवेदन भेज रहें है। देखने सुनने में यह अविश्सनीय लगता है। मगर हमारे प्रिय भारतवर्ष की यह एक बहुत बड़ी और गौरवपूर्ण सच्चाई है। मेरी यह छोटी सी व्यंग्य कविता इसी संदर्भ में है।
एक बार
सिर्फ़ एक बार
हमारा कुशल भारत
काग़ज़ देखकर
कंप्यूटर में सही-सही
अपना नाम पता व उमर
ठीक से लिखना सीख जाए
फिर देखते हैं
कौन है दुनिया में
जो हमसे एक सूत भी
आगे बढ़कर दिखा दे
हम अपना नाम बदल देंगे
"बिहार-बिहार" सब कहता है न
बदलकर "विजयी-विजयी" कर देंगे
वैसे आपकी जानकारी के लिए
एक बात बता दूँ
कोई अनपढ़ अर्द्धकुशल या अंधे नहीं हैं हम
पूरे पढ़े-लिखे आँख वाले हैं
कर्मचारी चयन आयोग की
कठिन परीक्षा दी है पास की है
अनगिनत रिज़निंग सवालों के
सफल अभ्यास किये हैं
न जाने कितने कठिन
लुप्त पदों के जबाब तलाशे हैं दिये हैं
हमारी कुशलता में तो कहीं संदेह नहीं
अग्नि से तपकर निखरी है
समझ में नहीं आता ये टाइपिंग
और लिखावट की ग़लतियाँ
न जाने कैसे किसकी लापारवाही से
समूचे देश में बिखरी हैं
दोषी चाहे जो भी हो
जाँच का विषय है
पता नहीं किसी दुश्मन देश से
मिली हुई कोई साज़िश ही हो
हमें आशा है आयोग बैठेगा
जाँच होगी और "गलतियाँ"
दोषी साबित होंगी
इसीलिए तो कहता हूँ
अभी कोई ताना देता है
तो देता रहे..
आशा में हम भी हैं
बस एक बार
सिर्फ़ एक बार
हमारा कुशल भारत
काग़ज़ देखकर
कंप्यूटर में सही-सही
अपना नाम पता व उमर
ठीक से लिखना सीख जाए
फिर हम भी देखते हैं ..!
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