मेरे गाँव की नासी 

15-03-2021

मेरे गाँव की नासी 

राजनन्दन सिंह (अंक: 177, मार्च द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

मेरे गाँव की नासी अपने गाँव की 
बरसाती नासी1 की तरह 
हो गया हूँ मैं
न नदी हूँ न नाला हूँ
कहीं सूखा कहीं छिछला
टूट-टूट कर बहता हुआ सा
एक पनाला हूँ
 
कहीं-कहीं मुझमें भी गहराई है
शांत सुप्त सी गहराई
मछलियाँ उसमें बड़े आराम से
बिना पंख हिलाये
इधर-उधर विचरती है
मैं गहरा हूँ
 
इसका कोई अर्थ नहीं है
मैं सूखा हूँ मैं छिछला हूँ
यही मेरी पहचान है
बड़ी नदियाँ अपने जगह पर हैं
मगर बरसाती प्रभाव से बचकर
वह भी दिखा दें
तो मैं मानूँ
 
स्त्रोत बड़ा है तो नदी बड़ी है
स्त्रोत के अभाव में 
हर कोई हर चीज़
मेरे गाँव की बरसाती नासी की तरह
सिर्फ़ बरसात और बाढ़ में नदी है
 
कुदिने2 में वह भी मेरी तरह  
मेरे गाँव के नासी की तरह    
एक टूटी हुई कड़ी है
एक बिखरी हुई लड़ी है
 

  1. नासी= बरसाती नदी
  2. कुदिने= सामान्य दिनों में

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कहानी
सांस्कृतिक आलेख
कविता
किशोर साहित्य कविता
हास्य-व्यंग्य कविता
दोहे
सम्पादकीय प्रतिक्रिया
बाल साहित्य कविता
नज़्म
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में