अंतराल

राजनन्दन सिंह (अंक: 173, जनवरी द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)


अंतराल
चाहे जितना छोटा हो
अंतराल 
चाहे जितना बड़ा हो
आवृत्ति
आवृत्ति
और पुनरावृत्ति
यही तो होता है
जिसे हम या तुम
समझते हो
विलुप्त हो गया
उपस्थित हो जाएगा
एक दिन तुम्हारे हमारे सामने
लोप कुछ भी नहीं होता
धीरज रखो
और उसकी 
पुनरावृत्ति का अंतराल
ज़रा पूरा होने दो

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