मेरे मन में बसा है मेरा गाँव
मुझे आदत है
कच्ची सड़कों
अशहरीकृत पगडंडियों पर
सुबह की ओस भरी दूबियों पर
पैदल टहलने की
नंगे पाँव
बदलती ऋतुओं के संग
बदलते गाँव के रंग
कभी बिछी हुई हरियाली
कभी गेंहू धान की
पकी हुई सुनहरी बाली
हुलसते चेहरे
ख़ुशी के गीत
मुझे भाते हैं
मन को लुभाते हैं
खुली हवा
और पेड़ों की घनी लंबी छाँव
मेरे मन में बसा है मेरा गाँव