शिकायत थी ख़राश की, हार ले के आ गए
तुम आंदोलन की हवा बुखार ले के आ गए
काट कर नहीं ला सकते अब की जो फ़सल
तुम मुट्ठियों में अब की ज्वार ले के आ गए
सहमत नहीं होते तो ना सही मगर क्या
ज़रूरी थी अपनी धुन सितार ले के आ गए
सियासत की नासमझी क़तार में खड़ी
तुम ट्रेक्टर को समझ तलवार ले के आ गए
वादों से मुकरने का यहाँ जोश लबालब
इन्हीं के सामने इल्तिजा गुहार ले के आ गए