विज्ञानकु यानी हाइकु विज्ञान के
सुभाष चन्द्र लखेड़ाप्रसन्नता की बात है कि विगत डेढ़ वर्ष के दौरान देश-विदेश में हज़ारों लोग विज्ञानकु से परिचित हो चुके हैं। इसका श्रेय सोशल मीडिया के साथ उन पत्र-पत्रिकाओं को भी है जिन्होंने विज्ञानकु को पाठकों तक पहुँचाया है। उल्लेखनीय है कि आपकी प्रिय ई-पत्रिका ‘साहित्य कुंज’ ने विज्ञान संचार की इस नवजात विधा को स्थापित करने में अपना अमूल्य योगदान दिया है। कैनेडा से प्रकाशित होने वाली इस पाक्षिक ई-पत्रिका में अब तक 260 विज्ञानकु प्रकाशित हो चुके हैं।
बहरहाल, विज्ञान संचार की इस नई विधा की शुरूआत मैंने जनवरी 2021 में शुरू की। उन दिनों मैं न्यू जर्सी (अमेरिका) में था। एक दिन मुझे ख़याल आया कि विज्ञान के प्रचार-प्रसार में जापानी काव्य विधा हाइकु का उपयोग किया जा सकता है।
दरअसल, “विज्ञानकु” विज्ञान के हाइकु हैं। यह सृजन विधा काव्य की जापानी विधा हाइकु से प्रेरित है एवं उसका सरलीकरण है। हाइकु प्रकृति की अनुभूति के चरम क्षण की कविता है तो विज्ञानकु विज्ञान की अनुभूति की कविता है। हाइकु के नियम हैं: कविता तीन पंक्तियों की हो। पहली पंक्ति में पाँच, दूसरी पंक्ति में सात और तीसरी पंक्ति में पाँच अक्षर हों। दूसरा नियम है: तीनों पंक्तियाँ स्वतंत्र हों; परस्पर निर्भर न हों।
उल्लेखनीय है कि विज्ञानकु की तीन पंक्तियाँ एक दूसरे से स्वतंत्र नहीं होती हैं और विज्ञानकु का बहुवचन भी विज्ञानकु है। फ़ेसबुक पर सर्वप्रथम मैंने अपने निम्न विज्ञानकु 10 जनवरी 2021 के दिन पोस्ट किए थे:
“विज्ञानकु”
जलाएँ दीये
मिलके विज्ञान के
सबके लिए।
अँधेरा मिटे
जिससे अज्ञान का
कोहरा छँटे।
कोशिश रहे
विज्ञान की सर्वत्र
सरिता बहे।
इन तीन विज्ञानकु को तब पंद्रह लोगों ने पसंद किया था। फ़ेसबुक में ये नाम इस क्रम में हैं: सर्वश्री सुभाष चंद्र भट्ट, ओम प्रकाश जोशी, सौ० सुधा लखेड़ा, सुश्री शुचि मिश्रा, दिनेश लखेड़ा, रवि लायटु, रामसरन दास गुप्ता, दिलीप झा, सुश्री निवेदिता लखेड़ा, यशपाल सिंह यश, नवनीत कुमार गुप्ता, हरी लखेड़ा, रवींद्र धामी, सुरेश नीरव जय हो और हरीश गोयल।
उल्लेखनीय है कि पहला कॉमेंट श्री यशपाल सिंह यश का था, “वाह सर।” और दूसरा पंडित सुरेश नीरव का, “लाजवाब लाजवाब लाजवाब।” श्री रवि लायटु ने कुछ सुझाव दिया था और हरीश गोयल जी ने अँग्रेज़ी में लिखा था, “गुड हाइकु।”
मैंने 11 जनवरी को तीन किश्तों में पंद्रह विज्ञानकु पोस्ट किए। मैंने मित्रों से उस दिन तीसरी पोस्ट में सवाल किया था कि क्या विज्ञान संचार के लिए इस विधा को आगे बढ़ाया जाए?
इस पोस्ट को 50 मित्रों ने देखा था। उनके नाम फ़ेसबुक के क्रम में इस प्रकार से थे: (सर्व श्री. सुश्री. डॉ०): रवि लायटु, मुकुंद जोशी, राजेश कुमार ठाकुर, देवेन मेवाड़ी, सुभाष चंद्र भट्ट, शेर सिंह नसवारिया, प्रदीप कुमार, चंद्र मोहन, यशपाल सिंह यश, नितिन उपाध्याय, दिलीप झा, आकाश मिश्रा, धरोहर अभिषेक, दिनेश सी शर्मा, शुभ्रता मिश्रा, दीपक कोहली, (स्वर्गीय) कुसुमाकर दुबे, प्रज्ञा गौतम, सारिका घारू, शुचि मिश्रा, कमला पंत, नित्या वाजपेयी, आर डी गौड़, श्रीनिवास ओली, मोहन सगोरिया, प्रमोद पांडे, अनिल मिश्रा, शर्मा राजीव, पुखराज सोलंकी, अभिरूप चटर्जी, सरिता आर गुप्ता, नवीन कुमार नैथानी, गंगा असनोड़ा, विमला असनानी, मुनेंद्र सकलानी, प्रतुल बनर्जी, हरेंद्र सिंह असवाल, महेंद्र राणा, हितेश जैन, देव व्रत द्विवेदी, प्रदीप मुखर्जी, प्रदीप शर्मा, पारुल बहादुर, इंजी० मनु शर्मा, सुधीर केवलिया, अंकित बुटोला, हसन जावेद खान, पंत प्रकाश चंद्र, निवेदिता लखेड़ा और अमृतेंदु भट्टाचार्य।
इन पचास लोगों में से लगभग सभी ने यही कहा कि मुझे विज्ञानकु के कार्य को ज़रूर करना चाहिए। धीरे-धीरे विज्ञानकु को पढ़ने वालों की संख्या में इज़ाफ़ा होता गया और आज इस विधा से हज़ारों लोगों का परिचय है। आज विज्ञानकु के पाठक देश-विदेश सभी जगह हैं। वजह सिर्फ़ इतनी है कि विज्ञानकु अब अनेक पत्र-पत्रिकाओं में छप रहे हैं। इतना ही नहीं, कुछ मित्र अब स्वयं भी विज्ञानकु लिख रहे हैं।
प्रिंट मीडिया में ‘विज्ञानकु’ सर्वप्रथम जयपुर से प्रकाशित होने वाले वैज्ञानिक पाक्षिक ‘वैज्ञानिक दृष्टिकोण’ के मार्च 16, 2021 अंक में छपे। ‘विज्ञान प्रगति’ के दिसंबर 2021 अंक, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र की हिंदी विज्ञान साहित्य पत्रिका ‘वैज्ञानिक’ के जनवरी-मार्च 2022 एवं अप्रैल-जून 2022 अंक, देहरादून से प्रकाशित होने वाली विज्ञान पत्रिका ‘विज्ञान संप्रेषण’ में भी कुछ विज्ञानकु छपे हैं। इसके अलावा मुंबई से प्रकाशित होने वाली ई-पत्रिका ‘सीनियर गिरी’, कैनेडा से प्रकाशित होने वाली ई-पत्रिका ‘साहित्य कुञ्ज’, शारजाह से प्रकाशित होने वाली साहित्यिक ई-पत्रिका ‘अभिव्यक्ति’, पिट्सबर्ग से प्रकाशित होने वाली पत्रिका ‘सेतु’ और त्रैमासिक ई-पत्रिका ‘अनहद कृति’ में विज्ञानकु छप रहे हैं। सोशल मीडिया में भी श्री हरेंद्र श्रीवास्तव जैसे युवा रचनाकार विज्ञानकु लेखन कर रहे हैं।
अब तक विज्ञानकु को जो सम्मान राजस्थान के मूर्तिकार श्री त्रिलोक चन्द माण्डण से मिला, वह अनमोल है। उन्होंने मेरे शुरू के तीन विज्ञानकु को अपनी काष्ठ कला से अमरत्व प्रदान किया है।
बहरहाल, विज्ञानकु की इस अनवरत यात्रा में कुछ मित्रों ने सीधे विज्ञानकु रचकर मेरा उत्साह बढ़ाया तो कुछ ने कमोबेश मिलते-जुलते शब्दों में अपनी राय व्यक्त की है।
“विज्ञानकु” की बात करें तो सोशल मीडिया की बदौलत जब प्रोफ़ेसर धीरेंद्र शर्मा, विज्ञान रत्न श्री लक्ष्मण प्रसाद, इंजीनियर अनुज सिन्हा, श्री सूर्यकांत शर्मा, पंडित सुरेश नीरव, डॉ० सुबोध महंती, श्री देवेंद्र मेवाड़ी, डॉ० प्रदीप कुमार मुखर्जी, श्री पंकज चतुर्वेदी, श्री कपिल त्रिपाठी, श्री मानवर्धन कंठ, श्री नवनीत कुमार गुप्ता और डॉ० मनीष गोरे, श्री देवनंदन शर्मा आनंद, श्री अनिल कुमार त्रिपाठी, श्री मोहन सगोरिया, श्री रवि जैन, श्री मनीष श्री, श्री प्रेमचंद श्रीवास्तव, श्री हरेंद्र श्रीवास्तव और श्री इंद्र कुमार दीक्षित जैसे विज्ञान लेखकों और प्रेमियों ने मेरा उत्साह बढ़ाने के साथ ही इस विधा को आगे बढ़कर सहयोग दिया तो मुझे बेहद ख़ुशी हुई। इधर गुरुग्राम से अपनी विज्ञान और अन्य दूसरे विषयों की कविताओं के लिए चर्चित श्री यशपाल सिंह यश ने विज्ञानकु लिखे तो उधर लखनऊ से स्थापित कवि श्री हरीश चन्द्र लोहुमी ने भी विज्ञानकु लिखे तो मन फूला न समाया।
उल्लेखनीय है कि आज अनेक चर्चित महिला रचनाकार भी कर रही हैं विज्ञानकु का स्वप्न साकार। कुछ उल्लेखनीय नाम हैं: सुश्री ज्योतिर्मयी पंत, डॉ० इंदु झुनझुनवाला, सुश्री प्रज्ञा गौतम, डॉ० शुभ्रता मिश्रा, सुश्री अलका नायक, सुश्री सुमन ओमानिया, सुश्री राधा गुप्ता, सुश्री ऋचा जोशी और सुश्री प्रियंकी मिश्रा। विज्ञानकु के महिला प्रशंसकों की सूची तो बहुत लंबी है।
श्री सूर्य कांत शर्मा ने शुरूआती दौर में विज्ञानकु को लेकर “अमर उजाला काव्य” में अपनी एक लंबी रचना प्रकाशित की जो इंटरनेट पर मौजूद है। वर्ष 2021 बीतते-बीतते विज्ञानकु अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगे। इसको पसंद करने वालों की संख्या हज़ारों में पहुँच गई। फिर विज्ञानकु सृजन से जुड़े श्री आदराम नायक और उनकी पत्नी सुश्री अलका नायक। उल्लेखनीय है कि श्री आदराम नायक अब तक लगभग 460 विज्ञानकु लिख चुके हैं। इधर कुछ ही समय में उन्होंने विज्ञानकु सृजन में अपनी जो जगह बनाई है, उसकी जितनी प्रशंसा की जाए, वह कम ही होगी।
विज्ञानकु विधा के प्रचार-प्रसार में जिन मित्रों ने परोक्ष योगदान दिया है, उन सबका यहाँ उल्लेख करना न सम्भव है और न ही उचित। किसी एक का भी नाम छूट गया तो मैं स्वयं को क्षमा न कर पाऊँगा। यहाँ यह तथ्य उल्लेखनीय है की मेरे कुछ विज्ञानकु का श्री गुरजिंदर सिंह बराना ने गुरुमुखी में अनुवाद किया है। इधर कुछ समय से युवा विज्ञान लेखक प्रभास मुखर्जी अपने विज्ञान लेखों में स्वरचित विज्ञानकु का उपयोग कर रहे हैं।
बहरहाल, समय-समय पर विज्ञानकु को लेकर अनेक लेखक मित्र अपने विचार व्यक्त करते रहे हैं लेकिन स्थानाभाव के कारण यहाँ उन सबको समाहित करना सम्भव नहीं। हाँ, एक युवा भूविज्ञानी डॉ० रणधीर संजीवनी ने विज्ञानकु को लेकर जो राय प्रकट की है, वह कमोबेश सभी विज्ञानकु प्रेमियों की राय का निचोड़ है। डॉ० रणधीर के अनुसार “थोड़े से शब्दों में विज्ञान की जानकारियाँ, किसी मामले में निहित वैज्ञानिक सोच और वैज्ञानिक जागरूकता के लिए विज्ञानकु बहुत सक्षम और रोचक विधा है। यह (विज्ञानकु) उस चूरन की फाँक जैसा है जिसे हम हाज़मा दुरुस्त करने के लिए लेते हैं। विज्ञानकु छोटे से कलेवर में पूरी जानकारी देते हुए वैज्ञानिक चेतना को दुरुस्त कर देता है। यह उस स्वादिष्ट आचार या चटनी के चटखारे जैसा है जो स्वाद में इज़ाफ़ा करता है। विज्ञानकु विज्ञान में रुचि बढ़ा देता है। विज्ञानकु में आकर्षण है। उसमें चुटीलापन और गाम्भीर्यता का अद्भुत संयोजन है। वैज्ञानिक ज्ञान और चेतना के लिए उद्दीपन देने का काम विज्ञानकु बख़ूबी करता है और अधिक कर सकता है और निश्चित ही करेगा। आपका यह प्रयास सराहनीय और अनुकरणीय है।”
युवा विज्ञान संचारक सुश्री अंजलि ढाका ने “विज्ञानकु” को लेकर अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा है, “सरल भाषा में विज्ञान संचार के लिए विज्ञानकु बहुत ही अच्छा माध्यम है। विज्ञानकु को विज्ञान पत्रिकाओं में भी स्थान मिलना चाहिए जिससे विज्ञान जन जन तक पहुँचे।
हैं सरल ये विज्ञानकु
नहीं है भाषा बिलकुल भी कठिन
हर विषय पर आएँ विज्ञानकु
यही है हम सबका मन
सब दिखाएँ प्रतिभा अपनी
करें विज्ञान लोकप्रिय सब जन।”
गुरुग्राम (हरयाणा) निवासी और चर्चित लघुकथाकार सुश्री ज्योतिर्मयी पंत के अनुसार “साहित्य की सभी विधाएँ किसी न किसी रूप में ज्ञान में वृद्धि करती हैं। जहाँ तक विज्ञानकु की बात है यह विज्ञान जैसे विषय को और भी रोचक और सुगम बनाने में सक्षम है।
इस विधा से विज्ञान का प्रचार-प्रसार सरल होगा। विज्ञान विषय के सूत्र या फ़ार्मूले इसमें कहे जा सकते हैं। अपने दैनिक जीवन में कई बातें विज्ञान से जुड़ी होती हैं जिनका आभास हमें नहीं रहता। विज्ञानकु से उनके बारे में जाना जा सकता है। विज्ञान के विद्यार्थियों के लिए भी सहायक होंगे विज्ञानकु—ऐसा मेरा मानना है।”
कुल मिलाकर, विज्ञानकु क्या है और इसके सृजन के उद्देश्य को स्पष्ट करने के लिए अधोलिखित विज्ञानकु ग़ौरतलब हैं:
विज्ञानकु है
हाइकु विज्ञान का
यानी ज्ञान का।
यत्र या तत्र
विज्ञानकु को स्नेह
मिला सर्वत्र।
लिख रहे जो
विज्ञानकु इधर
वंदनीय वो।
यही आह्वान
विज्ञानकु विधा को
मिले सम्मान।
बने औज़ार
खुलें इससे बंद
विज्ञान द्वार।
-सुभाष चन्द्र लखेड़ा, सी-180, सिद्धार्थ कुंज, सेक्टर-7, प्लाट नंबर-17, द्वारका, नई दिल्ली-110075
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