अजीब संयोग

01-05-2022

अजीब संयोग

सुभाष चन्द्र लखेड़ा (अंक: 204, मई प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

“मेरी जान! हमारा मिलना एक संयोग था या मेरी क़िस्मत, जो भी है पर अब तुम मेरी ज़िन्दगी हो। तुम्हारे बिना मैं अपनी ज़िन्दगी की कल्पना भी नहींं कर सकता। मेरा प्यार तुम्हारे लिए कितना सच्चा है, शायद ये मैं शब्दों में नहींं बता सकता।” 

नग्मा आज वह तीसरी लड़की थी, जिससे नसीर अपने प्यार का इज़हार करते हुए यह सब कहा रहा था। वक़्त शाम का था और नग्मा उसे मेट्रो स्टेशन के बाहर मिली थी। 

वैसे प्रेम इज़हार करने के लिए ये सभी वाक्य उसने इंटरनेट से लिए थे। हाँ, कहने का अन्दाज़ उसका ज़रूर अपना था। 

 उसके मुँह से यह सुनते ही नग्मा हँसते हुए बोली, “चुप क्यों हो गए? आगे के वाक्य भूल गए क्या?” फिर वह व्यंग्य से मुस्कुराते हुए बोली, “इंटरनेट पर आगे ये भी तो लिखा हुआ है—प्लीज़ मुझे कभी छोड़ कर मत जाना। मुझे ये सोचकर ही डर लगने जाता है क्योंकि अब मेरे दिल की धड़कन तुम ही हो और यदि तुम नहीं हो तो फिर कुछ भी नहीं है। मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ और हमेशा करता रहूँगा।” 

फिर नग्मा मेट्रो स्टेशन के अंदर दाख़िल होते हुए बोली, “सुबह शबनम से भी तुम ऐसा ही कुछ आधा-अधूरा बोले थे।” 

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