बीवी पराई

15-07-2023

बीवी पराई

सुभाष चन्द्र लखेड़ा (अंक: 233, जुलाई द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

चकोर सुबह दूध के डिपो पर मिले तो बोले, “यार तुम्हारे से कुछ निजी बात करनी है। चलो, थोड़ी देर पार्क में बैठते हैं।” 

दूध लेकर हम दोनों पार्क पहुँचे और एक बेंच पर पसर गए। मैंने चकोर की तरफ़ देखा तो लगा वे कुछ उलझन में हैं। मैं जल्दी में था। फलस्वरूप, मैंने कहा, “तुम कुछ चर्चा करने वाले थे; बोलो क्या बात है?”

चकोर बोले, “तुम से बचपन से दोस्ती है, इसलिए बता रहा हूँ। अन्यथा तो ऐसी बातें बताकर इंसान अपनी ही हँसी उड़वाता है।” 

“नहीं, तुम बेझिझक होकर बोलो क़िस्सा क्या है?”मैंने चकोर का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा। 

चकोर बोला, “कल तुम्हारी भाभी के मोबाइल के लिए चार्जर लेने बाज़ार गया तो दुकानदार को व्यस्त देख मैं यूँ ही उनके मैसेंजर को देखने लगा। पहली ही पोस्ट में लिखा था—बला की ख़ूबसूरत हो। आगे लिखा था—दिल से। ऊपर देखा तो कोई ज्ञान की बात नहीं। ब्यूटीफुल, बहुत सुन्दर, वाह, शानदार . . . सारा कॉलम इन्हीं शब्दों से भरा था।

“ख़ैर, उत्सुकता बढ़ी तो मैं उनकी फ़ेसबुक देखने लगा। एक मित्र ने लिखा था—अ थिंग ऑफ़ ब्यूटी इज़ ए जॉय फ़ॉर एवर। कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने उनकी एक ही तस्वीर के नीचे सुपर, प्रिटी, सो स्वीट, एंड ब्यूटीफ़ुल और न जाने क्या क्या लिखा हुआ था। ताज्जुब यह है कि एक-एक तस्वीर के नीचे दो-दो सौ कमेंट्स थे। मैं कई बार जनता के मुद्दे उठाता हूँ। मजाल है कि दस से ऊपर लोगों ने कभी दिलचस्पी दिखाई हो।” 

मैंने हँसते हुए उसका हाथ दबाते हुए कहा, “दरअसल, ऐसा वे लोग लिखते हैं जिनकी पत्नी फ़ेसबुक पर नहीं होती। ऐसे लोग अपनी पत्नी को तो तालिबानी तरीक़े से रखते हैं लेकिन दूसरे की बीवियों के साथ गुफ़्तुगू करने में इनको बहुत आनंद आता है। दूसरों की बीवियाँ इन्हें मलाई लगती हैं और अपनी बरसाती मौसम में छत पर जमी अनचाही काई। सिगमंड फ़्रॉयड ने इस मानसिकता वाले लोगों के लिए क्या कहा, यह तो देखना पड़ेगा लेकिन इतना तय है ये ऐसे लोग होते हैं जो अपनी घर-गृहस्थी पर ध्यान देने के बजाय दूसरों के घरों में ताँक-झाँक करते है। तुम्हें इन बातों से परेशान होने की ज़रूरत नहीं। और हाँ, भाभी जी को भी इस बारे में कुछ नहीं कहना। मैं उन्हें अच्छी तरह से जानता हूँ और उनके अतीत के बारे में भी बहुत कुछ जानता हूँ। मैं उन्हें तब से जानता हूँ जब वे नौवीं कक्षा में पढ़ती थी।” 

मैंने बात समाप्त की और मैं बेंच से उठ गया। चकोर भी मुझे संतुष्ट नज़र आया। चलते हुए मुझे मज़ाक़ सूझा और मैंने चकोर को आँख मारते हुए कहा, “यार, इतना तो तुम भी मानोगे कि भाभी पैंसठ की उम्र में भी पैंतीस की लगती हैं।” 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता - हाइकु
स्मृति लेख
लघुकथा
चिन्तन
आप-बीती
सांस्कृतिक कथा
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
व्यक्ति चित्र
कविता-मुक्तक
साहित्यिक आलेख
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में