ईश्वर

सुभाष चन्द्र लखेड़ा (अंक: 197, जनवरी द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

यह एक पुराना क़िस्सा है। यूँ यह क़िस्सा सच भी हो सकता है और मनगढ़ंत भी। 

ख़ैर, क़िस्सा यूँ है। एक रूसी विद्वान बीते वक़्त में भारत आया। उसने काफ़ी समय यहाँ के सरकारी कर्मचारियों के अध्ययन में बिताया तो फिर एक दिन वह स्वदेश वापसी के लिए पालम एअरपोर्ट पहुँचा। वहाँ फ़्लाइट की प्रतीक्षा करते वक़्त उसे एक भारतीय पत्रकार ने पूछा, “आपका अनुभव कैसा रहा?”

वह रूसी विद्वान बोला, “भारत आने से पहले मेरा ईश्वर में यक़ीन नहीं था लेकिन अब है।” 

पत्रकार ने पूछा, “इसकी वजह? “ 

वह बोला, “यहाँ कोई काम नहीं करता फिर भी यह देश चल रहा है; ऐसा ईश्वर कृपा से ही सम्भव है।” 

1 टिप्पणियाँ

  • 16 Jan, 2022 07:54 AM

    वाह सुभाष जी मज़ा आ गया । बधाई

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