भ्रष्टाचार की जड़ें

15-03-2023

भ्रष्टाचार की जड़ें

सुभाष चन्द्र लखेड़ा (अंक: 225, मार्च द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

अभी हाल में भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने एक मामले की सुनवाई के दौरान जब यह कहा कि भ्रष्टाचार कैंसर है और इसे क़तई बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए तो मुझे लगभग तीन दशक पुराना एक वाक़या याद आ गया। 

मेरा परिचित एक युवक दिल्ली यूनिवर्सिटी से स्नातक परीक्षा पास करने के बाद नौकरी की तलाश में था। कुछ महीनों के बाद ख़बर मिली कि उसे कर्मचारी चयन आयोग के माध्यम से एक ऐसे विभाग से नौकरी के लिए नियुक्ति पत्र आया है जो रिश्वतख़ोरी के लिए मशहूर है। हम एक ही कॉलोनी में रहते थे और उस युवक के पापा मेरे मित्र थे। मैं शाम को मुबारकबाद देने उनके घर जा पहुँचा। बधाई देने के बाद मैंने उस युवक को समझाया, “तुम रिश्वतख़ोरी के मकड़जाल में मत फँसना क्योंकि इससे तुम उस दलदल में फँसते जाओगे और फिर तुम आगे कुछ न कर पाओगे।” 

ख़ैर, यही कोई दो महीने बाद जब वह मुझे मिला तो उसने जो कुछ बताया वह मेरे लिए एक अप्रत्याशित सूचना थी। उसने कहा, “वह तो अपना काम ईमानदारी से कर रहा है लेकिन प्रतिदिन शाम को उसे अपने मेज़ की दराज़ में एक लिफ़ाफ़े में कुछ रुपये रखे मिलते हैं। जब उसने अपने एक वरिष्ठ साथी से इस बाबत पूछा तो पता चला कि यह दिन भर हुई उगाही में उसका हिस्सा होता है।” 

बहरहाल, भ्रष्टाचार है, यह तो मैं जानता था लेकिन उसकी जड़ें इस क़द्र फ़ैल चुकी हैं—यह मुझे उस दिन पहली बार समझ में आया था। 

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