कर्मण्येवाधिकारस्ते

03-01-2016

कर्मण्येवाधिकारस्ते

सुभाष चन्द्र लखेड़ा

उस सुबह उसने फ़ेसबुक पर निगाह डाली तो उसे एक फ़्रेंड रिक्वेस्ट नज़र आई। उसने क्लिक किया तो उसे फ़्रेंड रिक्वेस्ट भेजने वाली उस युवती का चेहरा भा गया। उसने तत्काल कंफ़र्म करते हुए उसके मैसेज बॉक्स में लिखा- "भगवान ने तुम्हें बला का ख़ूबसूरत बनाया है। मैंने पहली बार फ़ेसबुक पर इतना ख़सूरत चेहरा देखा है।" अगले तीन दिन तक उसने दिन में कई बार अपना फ़ेसबुक अकाउंट खोला लेकिन उसे क्रेडिट में कुछ भी नया नज़र नहीं आया। ख़ैर, चौथे दिन उस ख़ूबसूरत युवती का जवाब आया- "हार्दिक धन्यवाद!" उसे महसूस हुआ कि शुरूआत हो चुकी है अब वह खेल को आगे बढ़ाएगा। उसने प्रत्युत्तर में लिखा- "मेरा दिल दिल की भाषा को बख़ूबी समझता है। अपना ख़्याल रखना; ख़ूबसूरती का मैं हमेशा से कायल रहा हूँ।" दो दिन बाद उधर से जवाब आया, "भैय्या, मुझे पता था कि मेरा कोई अपना सगा भाई नहीं है लेकिन एक न एक दिन मुझे आप जैसा एक नेक भाई ज़रूर मिलेगा।" जवाब पढ़कर उसने मुँह बिचकाते हुए तत्काल ही उस युवती को अनफ़्रेंड कर दिया। फिर वह ख़ुद को तसल्ली देते हुए फ़ेसबुक पर किसी दूसरी ख़ूबसूरत युवती को तलाशने लगा। वह फ़ेसबुक का एक अनुभवी खिलाड़ी है और "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन" में यक़ीन करता है।

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