युग प्रभाव
सुभाष चन्द्र लखेड़ा
सब कुछ वैसा ही होता रहा जैसे द्वापर युग में हुआ था।
उस युग में किसी ऋषि ने बिल्ली से भयभीत चूहे को अपनी मंत्र-शक्ति से पहले बिल्ली बनाया। फिर उसे कुत्ते से भयभीत देख कुत्ता बनाया।
एक दिन कुत्ते बने उस चूहे पर पर बाघ की नज़र पड़ी। बाघ ने कुत्ते को खाने के लिए उसका पीछा किया। बाघ की डर से कुत्ता भाग कर ऋषि की शरण में जा पहुँचा।
ऋषि बोले, "ब्याघ्र: त्वम् विभेति! त्वमपि ब्याघ्रों भव।”
अर्थात् बाघ तुम्हें डराते हैं तुम भी बाघ हो जाओ। ऋषि के आशीर्वाद से वह बाघ बन गया।
ख़ैर, दूसरे जानवर उसके बारे में बातें करते कि ये बाघ पहले चूहा था लेकिन ऋषि ने इसे आशीर्वाद देकर बाघ बना दिया है। जब भी कोई कहता कि ये तो पहले चूहा था तो वह बाघ बहुत लज्जित हो जाता।
बाघ ने सोचा कि जब तक ये ऋषि जीवित है, लोग मेरे बारे में ऐसा ही बोलते रहेंगे। इस ऋषि को ख़त्म कर देना चाहिए। ऐसा विचार कर उस कृतघ्न बाघ ने ऋषि पर आक्रमण कर दिया। ऋषि ने बाघ की कुटिलता को पहचान लिया। ऋषि ने कहा, "कृतघ्नोसि पुनर्मूषिको भव।”
अर्थात् तुम कृतघ्न फिर से चूहा हो जाओ। इस तरह कृतघ्न बाघ ऋषि के शाप से फिर से चूहा बन गया।
युग प्रभाव का असर देखो। इधर भी ऐसा ही कुछ हुआ लेकिन चूहे को बाघ बनाने वाले विशिष्ट व्यक्ति ने जब “पुनर्मूषिको भव।” कहा तो कुछ नहीं हुआ।
वह बाघ बोला, “कलियुग में तुम किसी को चूहे से बाघ तो बना सकते हो लेकिन उसे फिर से चूहा नहीं बना सकते। वजह सिर्फ़ इतनी है कि आज जो भी बाघ बनता है, उसके बाघ बनते ही उसे बाघ बनाने वाले की शक्तियाँ स्वतः समाप्त हो जाती हैं। एक बात और . . . कलियुग में सारे जानवर उस बाघ की चरण वंदना करने लगते हैं।”
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