एक अनूठा संस्मरण
सुभाष चन्द्र लखेड़ादिनांक 24 अगस्त, 2022 की शाम लगभग 10 बजे मैंने द्वारका, नई दिल्ली की अपनी सोसाइटी से उबर से संपर्क कर प्रीमियम टैक्सी मँगवाई। दरअसल, हम दोनों पति-पत्नी को एअर इंडिया की फ़्लाइट संख्या AI 105 (बोईंग 777-300 ईआर) से 25 अगस्त को 2:45 बजे इंदिरा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के टर्मिनल 3 से नेवॉर्क (न्यू जर्सी) के लिए रवाना होना था। लगभग पाँच मिनट में टैक्सी आई और हम टर्मिनल 3 के लिए रवाना हुए।
कोई पचास मिनट बाद जब हम टर्मिनल 3 पहुँचे तो हमें वहाँ कुछ वक़्त कुछ दूर से ट्रॉली लाने में लगा। ख़ैर, सामान (दो बड़े बैग और दो छोटे बैग) के साथ एअर इंडिया के काउंटर पर पहुँचें तो हमारा गर्मजोशी से स्वागत हुआ। कारण हम नहीं, कारण थे हमारे बिजिनस क्लास के वे दो टिकट जो बच्चों ने हम दोनों के अमेरिका पहुँचने और फिर अगले वर्ष वहाँ से स्वदेश वापसी के लिए ख़रीदे थे।
बिजिनस क्लास का काउंटर था। हमने चारों बैग उनके हवाले कर दिए। अब हम दोनों के पास सिर्फ़ अपना अपना एक-एक बैग था जिनमें हमारे पासपोर्ट, और दूसरी निजी ज़रूरत का सामान था। हमें बोर्डिंग पास तो आसानी से मिल गए लेकिन मुझे बताया गया कि मुझे सुरक्षा जाँच संबंधी किसी सिलसिले में कोई दस गज़ दूर उस काउंटर पर जाना है जहाँ दो सुरक्षाकर्मी बैठे थे। आतंकवाद ने दुनिया में जो तांडव मचाया हुआ है, उसके चलते हम जैसे निरीह नागरिक भी अब संदेह के घेरों में आने लगे हैं।
ख़ैर, मन में कोई भय न था लेकिन सवा चौदह घंटे की उड़ान से पहले ऐसी जाँच से मुझे ही क्यों, किसी को भी ख़ुशी न होगी।
मैं बोर्डिंग पास और पासपोर्ट को हाथ में लिए उस सुरक्षा काउंटर की तरफ़ बढ़ा तो जीवन संगिनी भी साथ चल पड़ी। वहाँ पहुँचे तो मुझसे चंद सवाल पूछे गए। रूटीन सवाल थे, “हम अमेरिका क्यों जा रहे हैं? हमारे बैग में कोई आपत्तिजनक सामान तो नहीं है? मैं कौन से सरकारी विभाग में था?” ऐसे ही चंद कुछ और सवालों के बाद वहाँ बैठे सुरक्षा अधिकारी ने किसी दूसरे अधिकारी को फ़ोन पर कुछ कहा और फिर मुझे ‘हैपी जर्नी’ कहते हए मेरा बोर्डिंग पास और पासपोर्ट मुझे पकड़ाया।
अब हमें वहाँ से आप्रवासन काउंटर की तरफ़ जाना था जहाँ बिजिनस श्रेणी से यात्रा करने वाले हवाई यात्रियों के लिए अलग से काउंटर है। यह हम दोनों को ज्ञात था क्योंकि हम पिछले सात सालों से जब भी अमेरिका आते हैं, बच्चे हमारे लिए इसी श्रेणी के टिकट ख़रीदते हैं। ख़ैर, वहाँ से भी जब हमारे पासपोर्ट और बोर्डिंग पास पर जाँच संबंधी मुहर लग गईं तो अब हम उस तरफ़ बढ़े जहाँ हमारे पास मौजूद सामान की और हमारी जाँच होनी थी। वहाँ भी बिजिनस श्रेणी के यात्रियों के लिए अलग से व्यवस्था थी।
आप्रवासन काउंटर से निकलने के बाद अब मैंने अपना बैग, अपना कोट, अपना मोबाइल और पत्नी ने अपना पर्स उन ट्रे में रखा जिन्हें सुरक्षा जाँच के लिए एअरपोर्ट सिक़्युरिटी स्कैनर से गुज़ारा जाता है। अपनी ट्रेज़ को स्कैनर की मूविंग बेल्ट पर रखने के बाद हम भी स्केनिंग दरवाज़ों से होकर गुज़रे और फिर सुरक्षाकर्मियों ने अपने हाथ के स्कैनर से हमारी जाँच की।
इस प्रक्रिया के संपन्न होने के बाद हम दोनों अब उस तरफ़ थे जहाँ स्कैनर से गुज़रे हए सामान को यात्रीगण स्वयं उठाते हैं। ख़ैर, तभी मैंने देखा कि पत्नी के पर्स को एक सुरक्षाकर्मी ने पुनः जाँच के लिए उठाया और वापस स्क़ेनर में डाला। यह देख पत्नी थोड़ी विचलित हुई तो मुझे भी थोड़ा अटपटा लगा। इधर मुझे इस तरफ़ जो ट्रे आ रही थी, उनसे फटाफट अपना सामान उठाना था। हवाई यात्रा करने वाले मुझे उम्मीद है उस आपाधापी से परिचित होंगे जो ऐसे मौक़ों पर हवाई अड्डों पर होती है।
बहरहाल, मैंने पहली ट्रे से अपना कोट उठाया और फिर दूसरी ट्रे से अपना बैग और फिर इसी दौरान पत्नी का पर्स भी स्कैनर से बाहर निकलता दिखा तो उसे उठाया और फिर मैंने अपना कोट पहना और पत्नी और मैं वहाँ से आगे चल दिए। हम मुश्किल से चार-छह क़दम ही चले होंगे कि पीछे से आवाज़ आई, “ये मोबाइल किसका है?”
मैंने नज़र घुमाई तो देखा कि सुरक्षाकर्मी के हाथ में मेरा मोबाइल है। हम दोनों वापस लौटे और “ये मोबाइल मेरा है; बहुत बहुत धन्यवाद!”कहकर मैंने वह मोबाइल लिया और फिर अपने गंतव्य ‘महाराजा लाऊँज’ की तरफ़ चल पड़े।
चार-छह क़दम चले तो हाथ में पकड़े मोबाइल को उलट-पलट कर देखा तो तुरंत समझ गया कि वह मेरा मोबाइल नहीं है। पत्नी और मैं वापस लौटे और सुरक्षाकर्मियों को वह मोबाइल दिखाते हुए बोला, “यह मेरा नहीं है।”
उन्हें मोबाइल थमाकर हम लगभग ग्यारह-साढ़े ग्यारह बजे महाराजा लाऊँज में पहुँचे और वहाँ अपनी पौने तीन बजे की फ़्लाइट का इंतज़ार करने लगे! इसके बाद जो हुआ, वह अप्रत्याशित और अचंभित करने वाला था।
महाराजा लाऊँज में पहुँचने पर हमने चाय और उसके साथ कुछ खाने की सामग्री मँगवाई। एक और बात जो इस बार हुई, वह थी बोर्डिंग पास में गेट नंबर का न होना। लाऊँज की कर्मचारियों ने बताया कि उन्हें जैसे ही गेट नंबर की जानकारी मिलेगी, वे हमें सूचित कर देंगे। बीच में दो बार मैं ग़ुस्लख़ाने में भी गया।
लगभग साढ़े बारह बजे का समय होगा कि मेरी नज़र एक युवती और उसके साथ अपनी तरफ़ आते वर्दी वाले सुरक्षाकर्मी पर पड़ी। वे जैसे ही हमारे पास पहुँचे, उस युवती ने मुझे अपने मोबाइल में एक तस्वीर दिखाते हुए पूछा, “सर, ये तस्वीर क्या आपकी है?”
मैंने सहमति में सर हिलाया तो उस युवती ने पूछा, “मोबाइल आपने ही लौटाया था न?”
मैंने जब हाँ कहा तो उस युवती के साथ आए सुरक्षा अधिकारी ने पूछा, “क्या आपने कोई बटुआ भी उठाया था?”
मैंने नहीं कहा और अपने कोट की दायीं जेब से उन्हें अपना बटुआ निकालकर दिखाते हुए कहा, “मेरे पास एक ही बटुआ है और यह मेरा है।”
यह सुनकर उस सुरक्षा अधिकारी ने किसी को फ़ोन किया और कहा, “सर, बटुआ इनके पास नहीं है।”
इस बीच मेरा हाथ अपनी पैंट की बायीं जेब की तरफ़ गया तो मुझे वहाँ कुछ होने का अहसास हुआ। मैंने तुरंत जेब में हाथ डाला और वहाँ से जब हाथ बाहर निकाला तो उसमें अब एक बटुआ था जो कुछ कुछ मेरे बटुआ जैसा था। ख़ैर, मैंने वह बटुआ उस सुरक्षा अधिकारी को दिया तो उसने उसे खोला और फिर उसके अंदर से देखने के बाद बोला, “जो इस बटुआ के मालिक ने बताया, सभी कुछ वैसा ही है।” आईडी, ड्राइविंग लाइसेंस, क्रेडिट्स कार्ड्स और नक़द राशि शायद उसे उसके मालिक द्वारा बताए विवरण के अनुसार लगे।
कुछ क्षण तक मैं सोच न पाया कि यह बटुआ मेरी पैंट की जेब में कैसे पहुँचा लेकिन तभी वह युवती बोली, “सर, हमारे पास आपका पूरा वीडियो है। हमें अंदाज़ा है कि यह सब कैसे हुआ।”
यक़ीन करें इस पूरे घटनाक्रम के दौरान मैं असमंजस की स्थिति में तो रहा लेकिन मुझे किसी तरह का कोई भय नहीं लगा। अच्छी बात यह भी रही कि जिस व्यक्ति का यह बटुआ था, उसे कैलिफोर्निया जाना था और उसकी फ़्लाइट हमारे बाद थी। मोबाइल फ़ोन भी उसी का था और बटुआ भी उसी का था। बाद में मैंने अनुमान लगाया कि वह बटुआ संभवतया उस ट्रे में था जो मेरे कोट की ट्रे और मेरी पत्नी के पर्स की ट्रे की बीच में था। मैंने उसे अपना बटुआ समझकर अपनी पैंट की जेब के हवाले कर तो दिया लेकिन फिर भूल गया। अब मुझे लगता है कि अगर मैंने ग़लती से वह मोबाइल न लिया होता जिसे मैं लौटाने गया था तो सुरक्षाकर्मियों के लिए मेरे तक पहुँचना मुश्किल होता और फिर अमेरिका आकर या उड़ान के दौरान मुझे अपनी ग़लती का पता चलता। इतना ज़रूर है कि मैं उस बटुए को उसके मालिक तक ज़रूर पहुँचाता क्योंकि उसमें उसके मालिक का पता मौजूद था।
ताज्जुब इस बात का है कि वे दोनों लोग मेरे को धन्यवाद दे रहे थे और कह रहे थे कि मेरे निर्दोष होने के प्रमाण उनके पास हैं। उन्होंने हमारे से मुस्कुराते हुए विदा ली। हाँ, इतना ज़रूर है कि इस वक़्त भी जब मैं इस अनोखे वृत्तांत को लिख रहा हूँ, मैं यह नहीं समझ पाया कि वह व्यक्ति उस वक़्त कहाँ था जब उसका सामान स्कैनर से बाहर आया था?
बहरहाल, लगभग पौने दो बजे हमें सूचना मिली कि हमें अपने वायुयान में दाख़िल होने के लिए गेट नंबर 22 पर पहुँचना है। हम पति-पत्नी आपस में बतियाते हुए अपने गंतव्य के लिए उस लाऊँज से निकल पड़े।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता - हाइकु
-
- विज्ञानकु: कोरोना - 2
- विज्ञानकु: अनुभव
- विज्ञानकु: आइंस्टाइन
- विज्ञानकु: आग्रह
- विज्ञानकु: आह्वान
- विज्ञानकु: एम एस स्वामीनाथन
- विज्ञानकु: ओमीक्रॉन
- विज्ञानकु: करें सवाल
- विज्ञानकु: कामना
- विज्ञानकु: कार्ल सगन
- विज्ञानकु: कोरोना - 1
- विज्ञानकु: कोरोना
- विज्ञानकु: खोज
- विज्ञानकु: चाह
- विज्ञानकु: जय भारत
- विज्ञानकु: जलवायु
- विज्ञानकु: जेम्स वाटसन
- विज्ञानकु: टोक्यो ओलंपिक–2020
- विज्ञानकु: तंबाकू निषेध
- विज्ञानकु: दिली चाह
- विज्ञानकु: दौलत सिंह कोठारी
- विज्ञानकु: ध्येय-1
- विज्ञानकु: ध्येय-2
- विज्ञानकु: नई विधा
- विज्ञानकु: नील्स बोर
- विज्ञानकु: नोबेल
- विज्ञानकु: पंद्रह अगस्त
- विज्ञानकु: परिचय
- विज्ञानकु: पृथ्वी दिवस
- विज्ञानकु: पेरिस ओलंपिक–2024
- विज्ञानकु: पॉल ऐडोस
- विज्ञानकु: प्रथम किताब
- विज्ञानकु: प्रदूषण
- विज्ञानकु: प्रौद्योगिकी
- विज्ञानकु: फ्रांसिस क्रिक
- विज्ञानकु: भूविज्ञान
- विज्ञानकु: भौतिकी
- विज्ञानकु: मापन यंत्र 2
- विज्ञानकु: मिटे अज्ञान
- विज्ञानकु: मित्र
- विज्ञानकु: मिशन
- विज्ञानकु: मूल उद्देश्य
- विज्ञानकु: रसायन
- विज्ञानकु: लक्ष्य
- विज्ञानकु: लिनस पॉलिंग
- विज्ञानकु: विज्ञान
- विज्ञानकु: विज्ञान लेखन
- विज्ञानकु: विज्ञान वही
- विज्ञानकु: विज्ञान संचार - 1
- विज्ञानकु: विज्ञान संचार - 2
- विज्ञानकु: विश्व जल दिवस-2022
- विज्ञानकु: विश्व विरासत दिवस
- विज्ञानकु: विश्व स्वास्थ्य दिवस
- विज्ञानकु: वैज्ञानिक
- विज्ञानकु: वैज्ञानिक – 01
- विज्ञानकु: शोध हमारे
- विज्ञानकु: शोधार्थियों से
- विज्ञानकु: संकल्प
- विज्ञानकु: सर न्यूटन
- विज्ञानकु: सर सी वी रामन
- विज्ञानकु: सर्वत्र
- विज्ञानकु: सृजन
- विज्ञानकु: स्वच्छ हो धरा
- विज्ञानकु: स्वच्छता अभियान
- विज्ञानकु: स्वच्छता
- विज्ञानकु: स्वास्थ्य
- विज्ञानकु: हमारा लक्ष्य
- विज्ञानकु: हिंदी दिवस
- विज्ञानकु: होमी भाभा
- विज्ञानकु: पुस्तक
- विज्ञानकु: मापन यंत्र 1
- विज्ञानकु: सर बेंजामिन थॉम्पसन
- विज्ञानकु: सेहत
- विज्ञानकु: बच्चे
- विज्ञानकु: विज्ञान मर्म
- विज्ञानकु: विज्ञान संचार
- विज्ञानकु: हिंदी हित
- विज्ञानकु: सीधी बात
- हिंदी की बात
- स्मृति लेख
- लघुकथा
-
- अंजुम जी
- अगर तुम मिल जाओ
- अच्छे बेटे का फ़र्ज़
- अजीब संयोग
- अधूरी कथा
- अपने - पराये
- अपने-अपने मंदिर
- अप्रत्याशित
- अबूझ पहेली
- अर्थ का अनर्थ
- असली वज़ह
- आवाज़
- आख़िरी सीख
- ईश्वर
- उपलों में गणित
- उपाय
- उलटे रिश्ते
- उसकी पीड़ा
- एक और 'निराला'
- एक और निर्भया
- एक जांबाज़ की कथा
- एक ही सवाल
- औक़ात
- कर्मण्येवाधिकारस्ते
- कुछ तो बोल
- कृतघ्नता
- खटमल
- गिरगिट
- गुड़ जैसी बात
- चकोर का मज़ाक
- चकोर की चतुराई
- चित भी मेरी, पट भी मेरी
- चढ़ावा
- जन्म दिवस
- जागते रहो
- जीवन मूल्य
- जो अक़्सर होता आया है
- जो जीते वही सिकंदर
- ज्ञान की बात
- झटका
- टेक केयर
- ठेस
- डमरू का दुख
- डॉ. चकोर
- तरकीब
- तहज़ीब का मसला
- तुम्हारी क़सम
- दूसरी बेटी
- नकारने का रोग
- नाइन एलेवन
- नज़रिया
- पछतावा
- पति-पत्नी
- पत्रकारिता
- पाव आटा
- प्यादा
- प्रारब्ध
- बापू के नाम पर
- बाबा का ढाबा
- बीवी पराई
- बोझ
- ब्राह्मण
- भाँड
- भाई चारा
- भिखारी
- मानसिकता
- मौक़ापरस्त
- राक्षस
- राजनीति
- राम की शबरी
- लकड़बग्घे
- लाजवाब
- लोकतंत्र का अर्थ
- वापसी
- विज्ञान दिवस
- विदाई
- विधि का विधान
- वक़्त की मार
- शव यात्रा
- शहरी लड़के
- शहादत के बाद
- संकट मोचक
- संगत
- संत न छोड़ें संतई
- सतयुगी सपना
- सफलता का राज़
- सब कै यह रीती
- सभी चोर हैं तो
- सवाल
- सिले होंठ
- सौ का पत्ता
- स्कॉउण्ड्रल
- स्वारथ लागि
- हिसाब-किताब
- क़ाबिलियत
- ग़लतफ़हमी
- ज़िंदगी
- फ़साद की जड़
- चिन्तन
- आप-बीती
- सांस्कृतिक कथा
- हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
- व्यक्ति चित्र
- कविता-मुक्तक
- साहित्यिक आलेख
- विडियो
-
- ऑडियो
-