चकोर का दर्द 

15-08-2025

चकोर का दर्द 

सुभाष चन्द्र लखेड़ा (अंक: 282, अगस्त प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

सामान्यतया अधिकांश पति अपनी पत्नी की प्रशंसा से ख़ुश होते हैं लेकिन चकोर उनमें शामिल नहीं है। चकोर अगर पेड़ के पास भी खड़ा होगा तो समझ लो वह अपनी पत्नी चाँद की बुराई कर रहा होगा। 

बहरहाल, कभी-कभी मैं चकोर के इस अवगुण को भूल जाता हूँ और चाँद जी की प्रशंसा में कोई ऐसी बात कह देता हूँ जो चकोर पचा नहीं पाता। फिर वह तुरंत ही कोई ऐसी बात कह देता है जिससे चाँद जी का व्यक्तित्व धूमिल हो जाए। 

दरअसल, कल मैं सुबह 11 बजे चकोर के घर गया तो मेरी ना-नुकर के बावजूद चाँद जी ने तुरंत चाय बनाकर मेरे सामने रख दी। मोटे तौर पर ग्यारह बजे सुबह लोग चाय वग़ैरा बनाने से बचते हैं और पानी इत्यादि देकर अतिथि स्वागत की रस्म अदायगी कर देते हैं। इसकी एक वजह यह भी है कि अमूमन अधिकांश लोग चाय सुबह-शाम दो वक़्त पीते हैं। 

ख़ैर, चाँद जी तो चाय देकर अपने घरेलू कार्यों में मशग़ूल हो गई। इधर मैंने चाय पीते हुए चकोर से कहा, “मैं किसी वक़्त भी आऊँ, आज तक चाय बनाने में चाँद जी ने कभी तनिक भी देरी नहीं की। ताज्जुब होता है कि इस उम्र में भी उनकी फ़ुर्ती और अतिथि सत्कार की भावना जस की तस बनी हुई है।”

मेरा इतना कहना था कि चकोर मुँह बिचकाते हुए बोला, “शेखर, चाय बनाना तो बेहद आसान काम है। उबलते पानी में चाय, दूध और चीनी डाल दो और चाय तैयार लेकिन फ़ुर्ती तो चाय की पतीली और झूठे कप-प्लेट धोने के लिए चाहिए। क्या तुम जानते हो कि वह सब कौन . . .?” 

अभी चकोर अपना वाक्य पूरा करता कि तभी चाँद जी कप उठाने के लिए आ गई। ख़ैर, मैं चाँद जी और चकोर से विदा लेते हुए बोला, “अब चलता हूँ। पोते के स्कूल में जाने के लिए इधर आया तो सोचा मिलता चलूँ।”

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