सब कै यह रीती

01-01-2020

सब कै यह रीती

सुभाष चन्द्र लखेड़ा (अंक: 147, जनवरी प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

राघव जी की नींद यूँ तो पाँच बजे उचट गई थी लेकिन उन्होंने बिस्तर पर लेटे रहना मुनासिब समझा। सरकारी सेवा से रिटायर हुए पूरे पंद्रह वर्ष बीत चुके थे। पहले के कुछ वर्ष पोते-पोती की देखभाल में बीते लेकिन अब उनका पोता-पोती, दोनों किशोरावस्था की दहलीज़ पर थे। उन्हें राघव जी के बजाय अपने सखा-सखियों के साथ वक़्त बिताना अच्छा लगता था। पत्नी को गुज़रे तो आठ वर्ष बीत चुके थे। बेटा-बहू दोनों नौकरी करते थे। उनके पास तो अपने लिए ही वक़्त नहीं होता, वे राघव जी से कभी-कभार बात कर पाते थे। पत्र-पत्रिकाओं को पढ़ने और टीवी देखने से भी अब राघव जी ऊब चुके थे। कॉलोनी में उनके जिन दो बुज़ुर्गों से मित्रता थी, वे भी चल बसे थे।

ख़ैर, कभी यदि राघव जी किसी से बातचीत करने की कोशिश करते तो वे तुरंत ही समझ जाते थे कि उस व्यक्ति की उनमें या उनकी बातों में कोई रुचि नहीं है। ऐसी स्थिति में राघव जी को पुराने दिन याद आ जाते थे। वह वक़्त भी था जब घर या बाहर उनसे मिलने के लिए लोग इंतज़ार करते थे। ज़िला रोज़गार अधिकारी थे। कोई न कोई किसी बहाने अपनी फ़रियाद लेकर उनके घर तक पहुँच जाता था।

बहरहाल, इधर वे रिटायर हुए और उधर लोग उनसे कन्नी काटने लगे। अब तो उन्हें न तो कोई फोन करता है और न कभी उनसे मिलने आता है। राघव जी बिस्तर पर लेटे हुए उन उपायों पर विचार करने लगे जिनसे इस एकाकीपन से वे छुटकारा पा सकें। मन ही मन उन्होंने कुछ उपाय सोचे और फिर सुबह सात बजे वे बिस्तर छोड़कर अपने दैनिक कर्मों से निपटने लगे। चाय-नाश्ता करते-करते नौ बज गए तो उन्होंने अपने एक कनिष्ठ अधिकारी को फोन किया। जैसे ही वे कुछ बोलते, उधर से वह कनिष्ठ अधिकारी बोला, "सर, मैं फ़ुर्सत मिलते ही आपको फोन करूँगा।" इतना कहकर उसने फोन काट दिया। भारी मन से उन्होंने कुछ देर बाद एक ऐसे इंसान को फोन किया जिसे वे अपना ख़ास मानते थे। उसने फोन मिलने पर 'बैटरी' का बहाना बनाकर फोन काटा। अपने मोबाइल को जेब के हवाले कर राघव जी सोचने लगे-

"सुर नर मुनि सब कै यह रीती। 
स्वारथ लागि करहिं सब प्रीति॥"

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