बिना पते का इतिहास 

01-10-2025

बिना पते का इतिहास 

वीरेन्द्र बहादुर सिंह  (अंक: 285, अक्टूबर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)


वीरेंद्र बहादुर सिंह

बिना पते के
बंद लिफ़ाफ़े में 
आया आदमी . . . 
 
एकदम पहचान बग़ैर का नहीं होता। 
 
उसके भीतर से निकल आता है
ऊबड़खाबड़ रास्ता . . . 
 
रास्ते के ऊपर से
चल कर निकलते हैं कितने पैरों के निशान 
पैरों के निशान से मिलते हैं 
कितने दफ़न हुए 
इतिहास के पन्ने। 
 
और उन पन्नों को
पत्थर बना देते हैं
दो काँपते हाथ . . . 
 
और वही काँपते . . . मेहनती हाथ
लिफ़ाफ़े में बंद करते हैं
 
एक इतिहास . . . एक आदमी . . . एक . . . 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

लघुकथा
बाल साहित्य कहानी
सांस्कृतिक आलेख
सामाजिक आलेख
कविता
काम की बात
कहानी
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
चिन्तन
साहित्यिक आलेख
सिनेमा और साहित्य
स्वास्थ्य
किशोर साहित्य कहानी
ऐतिहासिक
सिनेमा चर्चा
ललित कला
पुस्तक चर्चा
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में