बिना पते का इतिहास
वीरेन्द्र बहादुर सिंह
वीरेंद्र बहादुर सिंह
बिना पते के
बंद लिफ़ाफ़े में
आया आदमी . . .
एकदम पहचान बग़ैर का नहीं होता।
उसके भीतर से निकल आता है
ऊबड़खाबड़ रास्ता . . .
रास्ते के ऊपर से
चल कर निकलते हैं कितने पैरों के निशान
पैरों के निशान से मिलते हैं
कितने दफ़न हुए
इतिहास के पन्ने।
और उन पन्नों को
पत्थर बना देते हैं
दो काँपते हाथ . . .
और वही काँपते . . . मेहनती हाथ
लिफ़ाफ़े में बंद करते हैं
एक इतिहास . . . एक आदमी . . . एक . . .
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