साहित्य, टेक्नोलॉजी और हम

15-10-2024

साहित्य, टेक्नोलॉजी और हम

वीरेन्द्र बहादुर सिंह  (अंक: 263, अक्टूबर द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

साहित्य की रचना में टेक्नोलॉजी की बात अब ज़रा भी नई नहीं है। भविष्य में अनेक मोर्चे पर टेक्नोलॉजी और मनुष्य का आमना-सामना होता रहेगा। उनमें से एक मोर्चा साहित्य का भी है। साहित्य की रचनात्मकता को अनन्य मानव अभिव्यक्ति कहा जाता है। पर क्या एआई के आने से रचनात्मकता की यह अनन्यता मानव सहज रह पाएगी? इस समय ऐसे तमाम रोबोट हैं, जो जैसी आप चाहते हैं, वैसी कहानियाँ और कविताएँ लिख देते हैं। विशाल डेटाबेस, मशीन लर्निंग और लार्ज लैंग्वेज मॉडल द्वारा एआई आप जैसी चाहते हैं, वैसी कहानियाँ या कविताएँ लिख कर दे सकता है। कोई रचनाकार अपने लेखन का पूरी तरह से एआईकरण न करना चाहे तो वह एआई के अमुक सवाल दे कर नया रचनात्मक प्लॉट या विषयवस्तु या कथाबीज एआई द्वारा प्राप्त कर सकता है और फिर ख़ुद लिख सकता है। इस तरह हाइब्रिड लेखन का भी प्रारंभ हुआ है। 

एआई यानी कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता के आगमन के बाद विश्व एक आकर्षक उत्क्रांति का साक्षी बना है। साहित्यिक दुनिया में इसका प्रवेश नवीनता, प्रयोगशीलता और विवाद को बढ़ावा देने वाला है। एआई जेनेरेटेड टेक्स्ट यानी कि लिखने के लिए भविष्य में प्रूफ़रीडर की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। बहुत तेज़ी से मुक्त लर्निंग की अपेक्षा एआई को हमारी भाषा के सभी सिद्धांत और अपवाद पहले ही पढ़ा दिए जाएँगे यानी वह भाषा की ग़लतियाँ नहीं करेगा। ग़ज़ल में छंद, रदीफ़ और क़ाफ़िया के नियम भी उसे ठीक से पढ़ा दिए जाएँगे यानी एआई रचित ग़ज़ल में छंद दोष नहीं होगा। विशेषांकों में सीज़नल लिखने वाले लेखकों को 1200 या 1500 शब्दों की मर्यादा में लिखने के लिए बारबार काट-छाँट या परिमार्जन नहीं करना होगा। एआई ठीक 1199 शब्दों में कहानी लिख देगा। वही कहानी 800 शब्दों में कहा जाए तो छोटी कर के मात्र 30 सेकेंड में लिख कर दे देगा। इतना ही नहीं, हिंदी साहित्य में प्रबंध काव्य या महाउपन्यास लिख कर महान बनने की इच्छा रखने वाले साहित्यकारों के आड़े भी यह एआई आएगा। अमुक निश्चित इनपुट दे कर वह टेक लेखक घड़ी के छठें भाग में दीर्घ उपन्यास लिखने की शुरूआत कर देगा। जो लेखक अमुक माहौल में लिखने के आदी हों और एक निश्चित वातावरण में ही मूड बनता हो, ऐसे मूडी लेखकों के लिए प्लास्टर उघड़ गया हो, इस तरह के ड्राइंगरूम में, चूँचूँ करने वाली कुर्सी पर बैठे हों, वहाँ भी वर्चुअल रियलिटी के माध्यम से कश्मीर की बर्फ़ीली वादियों की अनुभूति कर सकेंगे। अमुक लेखक बैठक में बैठे-बैठे जैसे महाभारत के युद्ध के मैदान में उतरे हों, ऐसी अनुभूति कर सकेंगे। दुर्योधन की भूमिका में वर्चुअल कायाप्रवेश कर के बैठक में ही बैठे-बैठे खंडकाव्य लिख कर दुर्योधन को सुयोधन कह कर, उसकी महानता का वर्णन कर के ख़ुद रातों-रात महान हो सकेंगे। समीक्षकों और संपादकों के लिए एआई बहुत बड़ा वरदान है। संपादक तो चुटकी बजा कर अमुक कवि की प्रसिद्ध रचनाएँ एआई से पसंद करा कर उन रचनाओं की वैशिष्ट्य के बारे में एक दीर्घ लेख लिखा लेंगे। संपादित किताब के बैक टाइटल पर छापने के लिए संपादन जैसा पहले किसी ने कुछ किया नहीं। यह युगकार्य है . . . यह संपादन अनन्य है . . . वग़ैरह वग़ैरह जैसा स्वनामधन्य होने का लेखन भी एआई ही लिख देगा। जो समीक्षक पूरी किताब पढ़े बग़ैर प्रस्तावना पढ़कर बड़ी ज़हमत से समीक्षा करते हैं, उनका काम और आसान हो जाएगा। एआई आपको बढ़िया समीक्षा करके दे देगा। इसमें अलग-अलग वर्ग के लिए अलग-अलग समीक्षाएँ हो सकती हैं। किसी भी कृति की प्रशंसा या आलोचना विवेचक करते हैं। यह काम भी एआई करेगा। आप जैसा चाहते हैं वैसा पर्सपेक्टीव वाली विवेचना आप को मिलेगी। इसलिए किसीकी भी आलोचना के लिए ख़राब होने वाला समय अब बचेगा। अनुवाद की पूरी दुनिया बदल जाएगी। किसी भी भाषा का उपन्यास या कोई अन्य किताब किसी भी भाषा वाला पढ़ सकेगा। नोबेल प्राइज़ विजेता की स्पीच टू टेक्स्ट में कन्वर्ट कर के उसका हिंदी में अनुवाद कर के पढ़ा या सुना जा सकेगा। यह सब पढ़ कर आप को ऐसा लगेगा कि जब सब कुछ एआई ही कर देगा, तब तो सब लेखक बेकार हो जाएँगे? अरे नहीं भाई नहीं। यहाँ मात्र एआई के उपयोग के बारे में चर्चा की गई है। बाक़ी एआई जो लेखन करेगा, उसमें अनेक मर्यादाएँ भी हैं। सब कुछ जो डैटा-बेस में फ़ीड किया गया है, उस पर ही आधारित होगा। एआई को जो सिखाया गया है, वैसा ही होगा। इसलिए कि एआई द्वारा रचित रचनाएँ होमोजीनियस होंगी। इसलिए कि उसमें समानता का पहलू अधिक देखने को मिलेगा। एआई ख़ुद आयास से लिखता है, इसलिए आयास वाले लेखन के लिए यह चुनौती है। पर अनायास ने बिजली की चमक में रची गई अनन्य रचनाएँ एआई कभी नहीं लिख सकता। क्योंकि एआई कभी किसी के आँसू पोंछने नहीं जा सकता। किसी लाचार मनुष्य के दिल की की गहराई और उसमें बसी वेदना को नहीं समझ सकता और न पा सकता है। अंत में एआई एक पॉवर्ड आर्ट है और मनुष्य के पास आर्ट पॉवर है। यह छोटा सा फ़र्क़ हमारी अनन्यता को बनाए रखे है क्योंकि वह दिखाई देता है। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
साहित्यिक आलेख
काम की बात
सिनेमा और साहित्य
स्वास्थ्य
कहानी
किशोर साहित्य कहानी
लघुकथा
सांस्कृतिक आलेख
सामाजिक आलेख
ऐतिहासिक
सिनेमा चर्चा
ललित कला
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
पुस्तक चर्चा
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में