बेटी हूँ
वीरेन्द्र बहादुर सिंह
बेटी हूँ, ख़ुश हूँ।
बेटी हूँ, दुखी हूँ।
ख़ुद के अस्तित्व को पा रही हूँ,
बेटी हूँ, ख़ुश हूँ।
दुनिया के दूषण के कारण,
माँ-बाप को होने वाली चिंता से,
बेटी हूँ, इसलिए दुखी हूँ।
माँ के स्नेह के साथ और,
पिता के अटूट विश्वास के साथ,
स्वप्न को साकार कर रही हूँ,
बेटी हूँ, इसलिए ख़ुश हूँ।
अनेक अवरोध और मर्यादा होने से,
बेटी हूँ, दुखी हूँ।
बेटी के व्यक्तित्व के साथ,
मम्मी-पापा के प्यार को पा रही हूँ,
बेटी हूँ, ख़ुश हूँ।
अंत में प्रकृति की अद्भुत रचना हूँ
बेटी हूँ, ख़ुश हूँ।
बेटी हूँ, ख़ुश हूँ।