मानव संग्रहालय

01-03-2023

मानव संग्रहालय

वीरेन्द्र बहादुर सिंह  (अंक: 224, मार्च प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

साल 3050। फ़्लाइंग कार पार्किंग में लैंड कर के रोबो परिवार के बाल रोबोट खिड़की की ओर दौड़े। वहाँ सामने बोर्ड लगा था—‘ह्युमन ज़ू’ और टैगलाइन थी ‘जाति भूल चुकी मानवजात’। अंदर प्रवेश करते ही था दंभी लोगों का पिंजरा। इस पिंजरे में रहने वाले भौंहें चढ़ाए आने-जाने वालों को घूर रहे थे। पिंजरे के बोर्ड पर लिखा था कि मनुष्यों में यह जाति सब से अधिक देखने को मिलती है और ज़्यादातर यह अन्य को तुच्छ मानती है। इसकी मुख्य ख़ुराक है अपना बखान। 

एक जैसे लग रहे दंभी मनुष्यों को देखना छोड़ रोबोट परिवार दूसरे पिंजरे की ओर पहुँचा, जो था लालची लोगों का पिंजरा। पिंजरे के बाहर से ज़ू देखने आए रोबोट जैसे ही पैसा दिखाते, अंदर रहने वाले मनुष्य ख़ुश हो जाते और रोबोट जो कहते, वह करने को तैयार हो जाते। एक सामान्य काग़ज़ के टुकड़े के लिए इस तरह पागल होते मनुष्यों को देख कर रोबोट परिवार को बहुत मज़ा आया। बाल रोबोट को वहाँ समय बिताना अच्छा लग रहा था, पर अभी उन्हें अन्य जाति के मनुष्यों को भी देखने जाना था। 

ख़ूँख़ार मनुष्यों के पिंजरे के सामने भीड़ अधिक थी। इसमें सब से ख़ूँख़ार मनुष्य का पिंजरा अलग था। यह विश्वासघाती मनुष्यों की जाति थी। एक डिजिटल गाइड बता रहा था कि इस जाति से ख़ूब सँभल कर रहना। यह आप के साथ होगी, आप को लगेगा भी कि यह आप के साथ है, पर यह पीठ पीछे कब वार कर दे, आप को पता नहीं चलेगा। इनकी मुख्य ख़ुराक अपने ही लोगों के साथ विश्वासघात करना है। 

बीच में एक छोटा पिंजरा था, जिसमें सरिया की जगह काँच लगा हुआ था। ये ऐसे लोग थे, जिनमें आत्मविश्वास की कमी थी। ये लोगों के सामने आने से कतराते थे। ध्यान से देखने पर ही दिखाई देते थे। इसके पीछे उन लोगों का पिंजरा था, जो तंत्र-मंत्र और कुछ विचित्र विधियाँ करते थे। हर किसी की अंगुलियों में तरह-तरह की अँगूठियाँ और गले तथा कलाई में रंग-बिरंगे धागे बँधे थे। पिंजरे पर लगे बोर्ड पर लिखा था—मनुष्य की इस जाति को बहुत आसानी से मूर्ख बनाया जा सकता है। 

इसके अलावा बिना वजह गाली देने वाले, लेडी रोबोट पर बुरी नज़र डालने वाले, बात-बात में झगड़ने वाले तथा हर बात में झूठ बोलने वालों के पिंजरे थे। 

रोबोट परिवार बाहर निकल रहा था, तभी रोबो गवर्नमेंट की ओर से घोषणा फ़्लैश हुई। 

“हमें बनाने वाले मानवों से अच्छे गुणों को ले कर मानवता नाम की चिप बनाई गई है। हर रोबोट से निवेदन है कि अगर इस चिप को ख़रीद कर वह ख़ुद में लगवाता है तो उसकी बैटरी लाइफ़ कमाल की हो जाएगी।”

रोबो परिवार ख़ुशी से चिप ख़रीदने के लिए आगे बढ़ा। तभी लालची मनुष्यों के पिंजरे से कोई चिल्लाया, “चार चिप साथ ख़रीदना तो एक फ़्री माँगना।”

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

सांस्कृतिक आलेख
लघुकथा
कविता
सामाजिक आलेख
ऐतिहासिक
कहानी
सिनेमा चर्चा
साहित्यिक आलेख
ललित कला
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
किशोर साहित्य कहानी
सिनेमा और साहित्य
पुस्तक चर्चा
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में