अदला-बदली

01-05-2024

अदला-बदली

वीरेन्द्र बहादुर सिंह  (अंक: 252, मई प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

सरिता जब भी श्रेया को देखती, उसके ईर्ष्या भरे मन में सवाल उठता, एक इसका नसीब है और एक उसका। क्या उसका नसीब उसे नहीं मिल सकता? 

सरिता के छोटे से फ़्लैट की बालकनी से श्रेया का भव्य बँगला बहुत सुंदर दिखाई देता था। वह जब भी पति के साथ मोटरसाइकिल से निकलती, श्रेया के बँगले की पार्किंग एरिया में खड़ी बीएमडब्ल्यू पर नज़र उसकी नज़रें चिपक जातीं।

अपनी ख़ूबसूरती को निखारने के लिए श्रेया खुले हाथों से पैसे ख़र्च करती थी। ट्रिम किए बाल, नियमित फ़ेशियल, पेडिक्योर, मेनिक्योर, सब कुछ संपूर्ण। सिर से ले कर पैरों तक सब कुछ व्यवस्थित और सुंदर। जबकि सरिता के मर्यादित बजट में यह सब कहाँ से हो पाता! उसके बिखरे बाल, उसमें बीच-बीच में सफ़ेद बाल। वह मेहँदी तो लगाती थी, पर कभी समय न मिलता तो काले बालों के बीच सफ़ेद बाल झाँकने में बिलकुल पीछे नहीं रहते थे। साग-सब्ज़ी काटते-काटते हाथों की अंगुलियों की चमड़ी खुरदुरी हो गई थी। ख़ुद बरतन माँजने से नाखूनों का रंग और आकार अजीब हो गया था। अगर श्रेया के यहाँ की तरह उसके यहाँ भी नौकरों की फ़ौज होती तो उसका भी सिर से ले कर पैरों तक अलग ही नक़्शा होता। पर उसके भाग्य में तो कुछ और ही था। 

कहाँ श्रेया के डिज़ाइनर कपड़े और कहाँ उसके साधारण कपड़े, इस्त्री किए कपड़े पहनने का आनंद ही कुछ और होता है, घंटों इस्त्री पकड़ने वाले सरिता के हाथ उससे कहते। रविवार को किसी ठेलिया पर चाट-पकौड़ी या समोसे-कचौड़ी खा कर लौटते हुए सरिता यही सोचते हुए अपार्टमेंट की सीढ़ियाँ चढ़ रही होती कि बीएमडब्ल्यू में फ़ाइवस्टार होटल की लज़्ज़त ही कुछ और होती है। 

श्रेया का शरीर हमेशा सोने और हीरों के गहनों से सजा होता था। समय समय पर वे बदलते रहते थे। जैसे कपड़े, वैसे आभूषण। जबकि सरिता को विवाह के समय जो मंगलसूत्र मिला था, वही एक महत्त्वपूर्ण गहना था। सोना ख़रीदने की औक़ात नहीं थी, इसलिए चाँदी पर सोना चढ़वा कर दिल को संतोष मिल जाता था। 

पर श्रेया को देख कर सरिता के दिल का संतोष लुप्त हो जाता और मन ईश्वर से एक ही सवाल पूछता, ‘श्रेया का भाग्य उसे नहीं मिल सकता क्या?’

और अगर मिल जाए तो . . . तमाम इंद्रधनुषी सपने आँखों में तैरने लगते। शाम को जब पड़ोस में रहने वाली हिमांशी ने बताया कि सामने वाले बँगले में रहने वाली श्रेया को ब्लड कैंसर है और लास्ट स्टेज में है। तब से सरिता भगवान से यही प्रार्थना कर रही है कि उसके भाग्य में जो है, वही ठीक है। प्लीज़ अदला-बदली मत कीजिएगा। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

सांस्कृतिक आलेख
लघुकथा
कविता
सामाजिक आलेख
ऐतिहासिक
कहानी
सिनेमा चर्चा
साहित्यिक आलेख
ललित कला
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
किशोर साहित्य कहानी
सिनेमा और साहित्य
पुस्तक चर्चा
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में