अकेला वृद्ध और सूखा पेड़
वीरेन्द्र बहादुर सिंह
अकेला वृद्ध बैठा है
सूखे पेड़ के नीचे
वृद्ध देखता है—
कभी पेड़ की ओर
कभी ख़ुद की ओर
और मन ही मन प्रार्थना करता है:
कहीं से लकड़हारा आए
और पेड़ के साथ मुझे भी काट दे।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
- साहित्यिक आलेख
- काम की बात
- सिनेमा और साहित्य
- स्वास्थ्य
- कहानी
- किशोर साहित्य कहानी
- लघुकथा
- सांस्कृतिक आलेख
- सामाजिक आलेख
- ऐतिहासिक
- सिनेमा चर्चा
-
- अनुराधा: कैसे दिन बीतें, कैसे बीती रतियाँ, पिया जाने न हाय . . .
- आज ख़ुश तो बहुत होगे तुम
- आशा की निराशा: शीशा हो या दिल हो आख़िर टूट जाता है
- कन्हैयालाल: कर भला तो हो भला
- काॅलेज रोमांस: सभी युवा इतनी गालियाँ क्यों देते हैं
- केतन मेहता और धीरूबेन की ‘भवनी भवाई’
- कोरा काग़ज़: तीन व्यक्तियों की भीड़ की पीड़ा
- गुड्डी: सिनेमा के ग्लेमर वर्ल्ड का असली-नक़ली
- दृष्टिभ्रम के मास्टर पीटर परेरा की मास्टरपीस ‘मिस्टर इंडिया'
- पेले और पालेकर: ‘गोल’ माल
- मिलन की रैना और ‘अभिमान’ का अंत
- मुग़ल-ए-आज़म की दूसरी अनारकली
- ललित कला
- हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
- पुस्तक चर्चा
- विडियो
-
- ऑडियो
-