अकेला वृद्ध और सूखा पेड़
वीरेन्द्र बहादुर सिंह
अकेला वृद्ध बैठा है
सूखे पेड़ के नीचे
वृद्ध देखता है—
कभी पेड़ की ओर
कभी ख़ुद की ओर
और मन ही मन प्रार्थना करता है:
कहीं से लकड़हारा आए
और पेड़ के साथ मुझे भी काट दे।
अकेला वृद्ध बैठा है
सूखे पेड़ के नीचे
वृद्ध देखता है—
कभी पेड़ की ओर
कभी ख़ुद की ओर
और मन ही मन प्रार्थना करता है:
कहीं से लकड़हारा आए
और पेड़ के साथ मुझे भी काट दे।