बेड टाइम स्टोरी
वीरेन्द्र बहादुर सिंह
“मैं पूरे दिन नौकरी और घर को कुशलता से सँभाल सकती हूँ तो क्या अपने बच्चे को अकेली नहीं सँभाल सकती? आधुनिक ज़माने की आधुनिक माँ हूँ और बच्चे की देखभाल की सभी आधुनिक पद्धतियों से परिचित हूँ। पूरे दिन की थकान के बाद भले ही अपने बच्चे को कहानियाँ नहीं सुना सकती, पर दिखा तो सकती हूँ। बेड टाइम स्टोरीज़ के कितने ऐप मोबाइल में हैं। आज की वेब पीढ़ी के बच्चे कहानियाँ सुनने के लिए नानी-दादी की राह नहीं देखते।”
कावेरी के इस उलाहने को समझने वाले विनोद ने हमेशा की तरह उसकी इस बात का जवाब देना उचित नहीं समझा। उसका ध्यान कावेरी पर नहीं, सामने बेड पर मम्मी के मोबाइल में बेड टाइम स्टोरी देख-सुन रहे आपने छह साल के बच्चे पर था। इधर कुछ मिनटों से मोबाइल से कोई आवाज़ नहीं आ रही थी। बच्चे की पुतलियों में भी कोई हलचल नहीं दिखाई दे रही थी। आँखें मोबाइल स्क्रीन पर हैरानी से एकटक जमी थीं। शीशे में बाल ठीक कर रही कावेरी का ध्यान इस ओर बिलकुल नहीं था।
विनोद ने गंभीरता से हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा, “देखूँ तो कौन सी स्टोरी सुन रहे हो?”
बच्चे के हाथ से मोबाइल ले कर स्कीन पर नज़र पड़ते ही विनोद ग़ुस्से में बोला, “जाओ दादी के पास, वह तुम्हें स्टोरी सुनाएँगी।”
पापा का क्रोधित चेहरा देख कर मासूम दादी के बेडरूम की ओर भागा। कावेरी की असहनशीलता चरमसीमा पर पहुँच गई। चेहरा ग़ुस्से से लाल-पीला हो उठा। वह कुछ कहती, उसके पहले ही विनोद ने मोबाइल उसके हाथ में थमा दिया। मोबाइल की स्क्रीन पर वायरस द्वारा आई नग्न तस्वीर अभी भी स्थिर थी।
एक भी शब्द बोले बग़ैर इस आधुनिक माँ ने अपने स्थिर मोबाइल का स्विच ऑफ़ कर दिया।
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