निर्दोष प्यार का गँवई गीत—गीत गाता चल

15-04-2023
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निर्दोष प्यार का गँवई गीत—गीत गाता चल

वीरेन्द्र बहादुर सिंह  (अंक: 227, अप्रैल द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

अभी कुछ दिनों पहले रिलीज़ हुई राजश्री प्रोडक्शन की फ़िल्म ‘ऊँचाई’ ऐक्ट्रेस सारिका के लिए घर वापसी के समान है। 45 साल पहले राजश्री के ताराचंद बड़जात्या निर्मित और हीरेन नाग द्वारा निर्देशित ‘गीत गाता चल’ फ़िल्म से सारिका ने हिंदी फ़िल्मों की दुनिया में धमाकेदार प्रवेश किया था। इसके पहले वह बाल कलाकार के रूप में काम करती थीं और लगभग 13 फ़िल्में कर चुकी थीं। लगभग पाँच साल की उम्र में 1976 में बीआर चोपड़ा की ‘हमराज’ फ़िल्म में उन्हें काम मिला था। इसके चार साल बाद उन्होंने मीना कुमारी-धर्मेन्द्र अभिनीत और ऋषिकेश मुखर्जी निर्देशित ‘मंझली दीदी’ में मीना कुमारी की बेटी की भूमिका की थी। इस फ़िल्म में सचिन पिलगाँवकर भी था, जो बाद में ‘गीत गाता चल’ में उनका हीरो बना था। 

इस फ़िल्म की बात करने से पहले थोड़ा सारिका की बात कर लेते हैं। अपनी शर्तों पर जीने वाली बॉलीवुड की अभिनेत्रियों में एक नाम सारिका का भी है। जिस ज़माने में लड़कियों का फ़िल्मों में काम करना परिवार वालों को पसंद नहीं था, उस समय सारिका ने मास्टर सूरज के नाम से लड़के की भूमिका की थी। 

1981 में जलाल आगा निर्देशित और नसिरुद्दीन शाह-आमोल पालेकर अभिनीत फ़िल्म ‘निर्वाण’ में उन्होंने खुला सीना दिखा कर फ़िल्म की थी। इससे उनका अपनी माँ से इस तरह झगड़ा हुआ था कि उन्होंने घर छोड़ दिया था और वह ‘बेघर’ हैं, इस बात की दोस्तों को जानकरी न हो, इसके लिए वह छह रातें कार में सोई थीं। उन्होंने दक्षिण के स्टार कमल हसन के साथ बिना विवाह के बेटी (श्रुति) को जन्म दिया था और दूसरी बेटी (अक्षरा) जब तक नहीं हुई, तब तक कमल हसन से यह कह विवाह करने से इनकार कर दिया था कि लोग यह ताना न मारें कि एक बेटी बिना विवाह के और दूसरी बेटी विवाह के बाद पैदा हुई थी। वह क्रिकेट स्टार कपिल देव से विवाह करते-करते रह गई थीं। अंत में वह बेटियों को बड़ी कर के कमल हसन से अलग हो गई थीं और अब वह डिम्पल कापड़िया की तरह फ़िल्मों में दूसरी इनिंग शुरू कर रही हैं। 

सारिका मूल दिल्ली के मराठी-राजपूत पेरंट्स के यहाँ पैदा हुई थीं। जबकि फ़िल्म पत्रकार स्वर्गस्थ अली पीटर ज़ोन के लिखे अनुसार वह मुंबई के वर्सोवा में कमल ठाकुर के यहाँ पैदा हुई थीं। यह कमल अपनी बेटी और पत्नी को छोड़ कर कहीं चला गया था। श्रीमती ठाकुर ख़ुद एक समय ऐक्ट्रेस बनने का सपना देख रही थीं। पर घर टूटने के बाद उन्होंने बेबी सारिका को आगे कर दिया था। विडंबना कैसी कि वयस्क होने पर सारिका को भी माँ को त्याग देना पड़ा था। 

‘ऊँचाई’ फ़िल्म के प्रमोशन के समय उन दिनों को याद कर के सारिका ने कहा था, “मुझे लगता है कि बच्चों को प्रोफ़ेशनल एक्टर नहीं बनाना चाहिए। जीवन पर उनका नियंत्रण नहीं रहता और उनसे काम कराने का मतलब उनका बचपन छीन लेना। यह बाल मज़दूरी जैसा है। बच्चों को आज़ाद होना चाहिए। मैं ख़ुद स्कूल नहीं गई और एक्टिंग करने के अलावा और कुछ नहीं कर सकी। मेरा बचपन मुझसे छीन लिया गया था।”

1975 में सारिका 13 साल की थीं, तब ‘गीत गाता चल’ साइन की थी। वयस्क एक्टर के रूप में यह उनकी पहली फ़िल्म थी। वह कहती हैं, “हक़ीक़त में 1975 की ‘कागज की नाव’ मेरी पहली वयस्क फ़िल्म थी। मैं एक साथ बाल कलाकार और हीरोइन के रूप में काम कर रही थी। बाल कलाकार से लीड कलाकार बनने के बीच मुझे ब्रेक ही नहीं मिला था।”

‘गीत गाता चल’ राजश्री प्रोडक्शन की दसवीं फ़िल्म थी। अनजान कलाकारों, हुनरमंदों को ले कर मात्र कहानी और संगीत के ज़ोर पर सफल पारिवारिक फ़िल्में देने के लिए राजश्री का नाम तब तक स्थापित हो चुका था। ‘गीत गाता चल’ की कहानी बहुत सादी और मीठी थी। श्याम (सचिन) नाम का एक अनाथ लड़का नाच-गाना कर के गुज़र-बसर करता था। एक बार एक मेले में दुर्गा बाबू (मनहर देसाई) और उनकी पत्नी गंगा (उर्मिला भट्ट) को श्याम मिल जाता है। उन्हें यह सुरीला लड़का इतना पसंद आ जाता है कि वे उसे घर ले आते हैं। 

पति-पत्नी की एक बेटी राधा (सारिका) मुँह लगी थी। उसके मन को भी श्याम भा जाता है और धीरे-धीरे उससे प्यार करने लगती है। श्याम को अपने गायन में मस्त रहना अच्छा लगता है। उसे घर-परिवार के बंधन नहीं अच्छे लगते। वह आज़ाद पंछी था और उसे वही जीवन अच्छा लगता था। जब उसे पता चलता है कि राधा के माता-पिता उसका विवाह राधा के साथ कर देने की फ़िराक़ में हैं तो श्याम संबंधो के पिंजरे में क़ैद होने के बजाय घर छोड़ कर वापस अपनी नौटंकी टोली में चला जाता है। वहाँ जिसे वह बहन मानता है, वह ‘दीदी’ उसे समझाती है कि उसने राधा को त्याग कर उसने ठीक नहीं किया। श्याम वापस आता है और ‘श्याम की पत्नी’ के रूप में अकेली जीवन गुज़ार रही राधा का हाथ थाम लेता है। 

फ़िल्म की कहानी राधा-कृष्ण की दंतकथा पर आधारित थी। इसमें नायक श्याम मोह-माया से अलग है और इसी बात ने इसे एक आध्यात्मिक स्पर्श दिया था। राजश्री प्रोडक्शन की यही एक विशेषता थी कि उसकी प्रेमकथाएँ निर्दोष होती थीं। उदाहरण के रूप में 1989 में आई इनकी फ़िल्म ‘मैंने प्यार किया’ में एक सदाबहार गाना था—आजा शाम होने आई/मौसम ने ली अंगड़ाई/तो किस बात की है लड़ाई। गीतकार देव कोहली के लिखे इस गाने का मूल मुखड़ा ऐसा था—आजा रात होने आई/मौसम ने ली अंगड़ाई। सूरज बड़जात्या के पिता ताराचंद ने इसे सुना तो सूरज से कहा था कि ‘रात’ निकाल कर ‘शाम’ कर दो। राजश्री की फ़िल्मों के हीरो-हीरोइन रात की बात नहीं करते। 

उनकी फ़िल्मों में ग्रामीण भारत की संस्कृति होती थी। उनमें प्रकृति के लिए प्यार झलकता था। जैसे कि फ़िल्म ‘गीत गाता चल’ का हीरो धोती-कुर्ता पहनता है, बैलगाड़ी हाँकता है, खेतों में मौज-मस्ती करता है और ठेठ गाँव की हिंदी बोलता है। लीला मिश्रा कॉटन की साड़ी पहनती हैं, चूल्हा फूँकती हैं और सभी ज़मीन पर बैठ कर साथ खाना खाते हैं। राजश्री के खलनायक भी शुद्ध भारतीय हैं। 

ये सभी तत्त्व उनके गीतों में झलकते हैं। कुल दस गाने थे और सभी सुमधुर थे। ‘गीत गाता चल ओ साथी गुनगुनाता चल‘, ‘श्याम तेरी बंसी पुकारे राधा नाम’, ‘बचपन हर ग़म से बेगाना होता है’, ‘कर गया कान्हा मिलन का वादा’, ‘मैं वही दर्पन वही न जाने क्या हो गया’, ‘श्याम अभिमानी हो श्याम अभिमानी रोज़ रोती रही राधा रानी’, ‘धरती मेरी माता पिता आसमान’, ‘मंगल भवन अमंगल हारी’, ‘मुझे छोटा मिला भरतार’। 
इसमें पहले जो दो गाने हैं, ‘गीत गाता चल . . . ’ और ‘श्याम तेरी बंसी . . . ’ आज भी उतने ही लोकप्रिय हैं। अलीगढ़ के जैन परिवार में जन्मे, जन्म से दिव्यांग रवीन्द्र जैन ने ये गाने लिखे थे और संगीतबद्ध किया था। इसके बाद उन्होंने राजश्री की बीस फ़िल्मों में काम किया था। उनके गाने इतना लोकप्रिय हुए थे कि उनके बारे में कहा जाता था कि आँखों में रोशनी के बिना रवीन्द्र जैन ने अपने संगीत से उजाला फैला दिया था। 

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