ब्राउन कुड़ी वेल्डर गर्ल हरपाल कौर

01-10-2025

ब्राउन कुड़ी वेल्डर गर्ल हरपाल कौर

वीरेन्द्र बहादुर सिंह  (अंक: 285, अक्टूबर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

पंजाब के लुधियाना और जालंधर के बीच ‘गुरा’ नाम का एक छोटा-सा शहर है। शनिवार की शाम वहाँ वेल्डिंग की एक दुकान में हाथ में वेल्डिंग का औज़ार लिए एक युवती ट्रैक्टर के इंजन में वेल्डिंग करती मिल जाएगी। उसके कपड़े काले-धूसर होते हैं। चेहरे पर पसीना, हाथ काले और रूप-रंग देखने लायक़ नहीं लगता। मगर रविवार को सुबह वही युवती जब बाइक पर बैठ कर सब्ज़ी मंडी जाती है तो वह बेहद आकर्षक और सुंदर दिखाई देती है। 

हाँ, यही है हरपाल कौर—आधुनिक युवती के जीवन की सच्चाई। यह है पंजाब की पहली, शायद भारत की भी पहली ‘वेल्डिंग गर्ल’, जो पूरे भारत में ख़ास कर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान आदि राज्यों में ’ब्राउन कुड़ी वेल्डर’ के नाम से जानी जाती है। 

वेल्डिंग का काम करने की वजह से शनिवार को उसका रूप ऐसा होता है, जबकि वास्तव में वह बहुत सुंदर है। पूरे सप्ताह वेल्डिंग का काम करने के कारण हरपाल का रूप-रंग इस तरह बदल जाता है। आज वह युवती होते हुए भी वेल्डिंग का काम करती है और विंटेज (पुरानी) मशीनों के टायर बनाने वाली कंपनी ब्राउन कुड़ी टायर्स के साथ व्यापार भी करती है। इसी कारण वह ’ब्राउन कुड़ी गर्ल’ के रूप में भी मशहूर हो गई है। 

हरपाल कौर को इन पुरुषप्रधान व्यवसायों में सफलता तुरंत नहीं मिली। उसके जीवन में कठिनाइयों का पहाड़ खड़ा हो गया था। उन्हीं कठिनाइयों की सीढ़ियाँ चढ़ कर उसने सफलता की चोटी हासिल की है। 

हरपाल कौर की कहानी शुरू होती है 20 साल पहले। कम उम्र में ही पंजाब की पुरानी परंपरा के अनुसार हरपाल की शादी कर दी गई थी। ससुराल वाले सख़्त थे और पति का भी सहयोग नहीं मिलता था। इसके बावजूद हरपाल ने ससुराल में 8 साल संघर्ष किया और सामंजस्य बैठाने की कोशिश की। लेकिन परिणाम असफल रहा। तब हरपाल अपने मायके लौट आई। 

हरपाल अकेली नहीं थी, उसकी उँगली पकड़ कर 9 साल का बेटा भी आया था। माता-पिता ने उसे डाँटा नहीं, बल्कि प्रेम से अपनाया। ख़ास कर पिता ने मानसिक रूप से बहुत सहारा दिया। 

हरपाल मायके में रहने लगी, पर उसे दो बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ा। पहली अन्य रिश्तेदार, सगे-संबंधी और पड़ोसी उसके मायके लौट आने पर ताने मारते थे और आलोचना करते थे। सुबह से शाम तक हरपाल को यह सब सुनना पड़ता था। दूसरी समस्या उसके पिता की छोटी-सी वेल्डिंग की दुकान थी और आर्थिक स्थिति साधारण थी। इस कारण हरपाल और उसके बेटे का ख़र्च पिता पर आ गया, जिससे उसके आत्मसम्मान को चोट पहुँचती थी। 

हरपाल कौर ने नौकरी खोजने का प्रयास किया, लेकिन असफल रही। 

परन्तु वह आधुनिक सोच की युवती थी। उसने अपनी नारीशक्ति को काम में लगाते हुए पिताजी से आग्रह किया कि उनकी वेल्डिंग शॉप में उसे मज़दूरी का काम दें। उसने शर्त रखी कि दूसरे वेल्डरों को जितनी दिहाड़ी मिलती है, उतनी ही उसे भी मिले। पिताजी भी चाहते थे कि हरपाल आत्मनिर्भर बने और अपने पैरों पर खड़ी हो, इसलिए उन्होंने उसे दुकान में वेल्डिंग का काम दे दिया और ₹300 की दिहाड़ी तय की, जितनी अन्य वेल्डरों को मिलती थी। 

हरपाल कौर की वेल्डिंग की ट्रेनिंग शुरू हुई और दृढ़ मनोबल, हिम्मत और जज़्बे से वह ’वेल्डिंग गर्ल’ बनी और अपनी यात्रा शुरू की। 

हरपाल ने जल्दी ही वेल्डिंग का काम अच्छे से सीख लिया। लोहे की वेल्डिंग कर, औज़ार बनाना और रिपेयर करना उसने पिताजी की छोटी सी दुकान में शुरू किया। 
वह सुबह जल्दी उठ कर घर के काम और बेटे की स्कूल की तैयारी करके दुकान पर पहुँच जाती और देर रात तक काम करती। उसका काम इतना अच्छा होता कि पुराने वेल्डरों से भी बेहतर करती। जो काम दिन में लेती, उसे रात तक पूरा कर देती। बड़े काम भी अगले दिन सुबह तक निपटा देती। उसने कभी भी 24 घंटे से अधिक, ग्राहकों का काम अधूरा नहीं छोड़ा। 

वेल्डिंग का काम कठिन और श्रमसाध्य माना जाता है। काम करते समय वह पसीने से तरबतर हो जाती। लगातार वेल्डिंग की तेज़ रोशनी से आँखों से पानी निकलता। भारी लोहे उठाने पड़ते और वेल्डिंग की चिनगारियों से कपड़े और हाथ काले हो जाते। पसीना पोंछते हाथ जब चेहरे पर लगते तो चेहरे पर भी काले दाग़ पड़ जाते। वेल्डिंग करते समय उसे ख़ास दस्ताने और बूट पहनने पड़ते। लंबे समय तक काम करने से गर्मी के कारण दस्ताने-बूट पैर से चिपक जाते और पैरों में जलन होने लगती। 

इतनी कठिन परिस्थितियों में भी हरपाल कौर पीछे नहीं हटी, क्योंकि उसके सामने बेटे का भविष्य और अपना आत्मसम्मान था। 

अपने दृढ़ मनोबल से वह इस माहौल में डटी रही और उसने टिकटॉक पर अपने काम के वीडियो बनाने शुरू किए। इस तरह वह थोड़ी मशहूर हुई, लेकिन भारत में टिकटॉक बैन हो गया। अब क्या करे? 

लेकिन हरपाल कौर नई पीढ़ी की टेक्नो-सेवी युवती थी। उसने सोशल मीडिया का सहारा लिया। उसने अपने वेल्डिंग कार्य और औज़ारों के छोटे वीडियो (रील) बना कर डालने शुरू किए। टिकटॉक के वीडियो और इन रीलों से लोग उसे पहचानने लगे। मीडिया ने उसका इंटरव्यू लिया, जिसे बहुत लोगों ने देखा और हरपाल कौर को और अधिक प्रसिद्धि मिली। 

इसके बाद उसने इंस्टाग्राम पर अपना पेज बनाया और यूट्यूब पर वेल्डिंग से जुड़ी खेती-बाड़ी और अन्य औज़ारों के वीडियो अपलोड करने लगी। इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर उसके सब्सक्राइबर बढ़ने लगे और पंजाब, हरियाणा, राजस्थान व अन्य राज्यों से खेती-बाड़ी और अन्य औज़ारों के वेल्डिंग के काम मिलने लगे। अब वह ’वेल्डिंग गर्ल के रूप में प्रसिद्ध हो गई और अपनी विशेषज्ञता से लोगों की ख़ूब प्रशंसा पाने लगी। उसके पिताजी का छोटा व्यवसाय अब बड़ा हो गया। 

आज हरपाल कौर खेती-बाड़ी के औज़ारों और अन्य मशीनों का काम तो करती ही है, साथ ही हेरिटेज मशीनों, रोस्टर और कलेक्टर आदि के टायरों में भी विशेषज्ञता हासिल कर चुकी है। इसी कारण उसका जुड़ाव ’कुड़ी टायर कंपनी’ से हुआ, जिससे वह ’ब्राउन कुड़ी वेल्डर’ के नाम से मशहूर हुई और अब यूट्यूब पर भी इसी नाम से उसका चैनल है। 

हरपाल कौर का बेटा अच्छे स्कूल में पढ़ता है। उसकी एक बहन पुलिस विभाग में है और सबसे छोटी बहन उसकी मदद करती है। पिताजी की वेल्डिंग की दुकान अब बहुत बड़ी हो गई है। 

हरपाल कौर आधुनिक युवतियों और महिलाओं को संदेश देती है कि जीवन में आने वाली पारिवारिक, आर्थिक या सामाजिक कठिनाइयों से डरना नहीं चाहिए। मुश्किलों का एक ओर दर्द है तो दूसरी ओर चुनौती है। चुनौती का रास्ता अपना कर आगे बढ़ना चाहिए। अपने भीतर छुपे हुनर, कला, दृढ़ मनोबल और धैर्य को हथियार बना कर जीवन में सफलता प्राप्त करना चाहिए। 

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